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________________ १८८ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व - सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण गुण है । जिस कविता का आशय अस्पष्ट हो, उससे, द्विवेदीजी के मतानुसार, प्रमाता का मनोरंजन नहीं हो सकता, 'न उसे सुनकर सुननेवाला कवि का अभिनन्दन ही कर सकेगा और जब उसके हृदय पर कविता का कुछ असर ही न होगा, तब वह कवि को कुछ देगा क्यों ?'१ सफल रचनाएं सरल ही नहीं होती, वरन् सभी प्रकार के अनावश्यक अलंकारों से भी मुक्त होती हैं। आडम्बरहीन, प्रसादगुण-सम्पन्न एव ओजस्वी रचनाएं ही अपनी प्रनविष्णुता के कारण प्रमाता को विमुग्ध करती हैं । ऐसी रचनाएँ ही पाठक को स्वतः आकृष्ट करती हैं। द्विवेदीजी ने इसी भाव को यह कहकर प्रकट किया है कि-'सत्कवि के लिए आडम्बर की मुतलक ही जरूरत नहीं। यदि उसमें कुछ मार है, तो पाठक और श्रोता और स्वयं ही उसके पास दौड़े जायेंगे। आम की मंजरी क्या कभी भौंरों को बुलाने जाती है ?-न रत्नमन्विष्यति मृग्यते हि तत् ।२ __द्विवेदीजी के मतानुसार, कवित्व-शक्ति दुर्लभ और विरल होती है। जिन कवियशोलिप्सुओं में प्रतिभा नहीं होती, वे कभी सफल कवि नहीं हो सकते। अध्ययन और अभ्यास से कवि बना जा सकता है, परन्तु प्रतिभा के बिना 'मनुष्य अच्छा कवि नहीं हो सकता ।'3 इस स्थल पर आचार्य द्विवेदीजी ने महाकवि क्षेमेन्द्र से अपनी सहमति प्रकट की है और उनकी पुस्तक 'कविकण्ठाभरण' पढ़ने का परामर्श दिया है : • "वर्तमान कविमन्यों को चाहिए कि वे उसे पढ़े, स्वयं न पढ़ सकें, तो किसी संस्कृतज्ञ से पढ़वाकर उसका आशय समझ लें। ऐसा करने से, आशा है, उन्हें अपनी त्रुटियों और कमजोरियो का पता लग जायगा ।"४ परन्तु, द्विवेदीजी यह भी स्वीकार करते हैं 'कि जहाँ कवित्व-शक्ति अनिवार्य है, वहाँ वह अपने-आप में पूर्णरूपेण पर्याप्त नहीं है। जिस व्यक्ति में कवित्व-शक्ति हो, उसे भी 'पूर्ववर्ती कवियों और महाकवियों की कृतियों का परिशीलन करना चाहिए और कविता लिखने का अभ्यास भी कुछ समय तक करना चाहिए।५ द्विवेदीजी के ये काव्य-सिद्धान्त भारतीय काव्यशास्त्र की वरिष्ठ परम्परा में न्यस्त हैं। उन्होंने छायावादी काव्य के जिन दोषों की और संकेत किया है, वे युगयुग से काव्यदोष माने जाते रहे हैं । भरत के नाट्यशास्त्र में काव्य के जिन दस दोषों का उल्लेख मिलता है, उनमें गूढार्थ, अर्थान्तर, अर्थहीन, भिन्नार्थ आदि-आदि दोष १. महावीरप्रसाद द्विवेदी : 'साहित्यालाप', पृ० ३२८ । २. उपरिवत्, पृ० ३३१-३२ । ३. उपरिवत, पृ० ३३३ । ४. उपरिवत् । ५. उपरिवत।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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