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________________ गद्यशैली : निबन्ध एवं आलोचना [ १६९ शुद्धता, सरलता, सुबोधता, स्पष्टता आदि भाषा के गुणों का उल्लेख पाश्चात्त्य आचार्यो के प्रभाववश काव्य एवं भाषा की युगीन स्थिति को देखते हुए किया है । मूलत: रसवादी होते हुए भी द्विवेदीजी ने अलंकारों, रीतियों और गुणों के साथ-साथ वक्रोक्ति पर विचार किया है । वे चमत्कार तथा वक्रता को भी काव्य का आवश्यक मानते थे । उन्होने लिखा है : “शिक्षित कवियों की उक्तियों में चमत्कार का होना परमावश्यक है । यदि कविता में चमत्कार नहीं तो उससे आनन्द की प्राप्ति नहीं हो सकती । "" सिद्धान्त रूप से ऐसा मानते हुए युग की सीमाओं तथा आवश्यकताओं से बँधा हो के कारण द्विवेदीजी ने न अपनी कविता में और न अपने शिष्यों की कविता में ही चमत्कार तथा वचनवक्रता को पनपने दिया । अन्य काव्य-सम्प्रदायों के प्रमुख गुणों को ग्रहण करते हुए भी द्विवेदीजी ने सरसता को ही काव्य की प्रमुख विशेषता माना है | इस सम्बन्ध में उनका निष्कर्ष है : सुरम्यता ही कमनीय कान्ति है, अमूल्य आत्मा रस है मनोहरे, शरीर तेरा सब शब्दमात्र है, नितान्त निष्कर्ष यही, यही, यही । २ इस प्रकार, काव्य के स्वरूप के सम्बन्ध में द्विवेदीजी की विचारधारा नीतिवादी, उपयोगितावादी तथा आनन्दवादी दृष्टिगोचर होती है । काव्य हेतु का विवेचन करने के सन्दर्भ में उन्होंने कवि को प्रातिभ ज्ञान-सम्पन्न एवं नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा से परिपूर्ण कलाकार माना है । यथा : " कवि के लिए जिस बात की सबसे अधिक जरूरत होती है, वह प्रतिभा है । " 3 प्रतिभा सम्पन्न कवि की रचना कविता को द्विवेदीजी ने एक और कान्तासम्मित उपदेश की दृष्टि से महत्ता दी है और दूसरी ओर शिवत्व की रक्षा भी इसका मुख्य उद्देश्य घोषित किया है । द्विवेदीजी ने काव्य में लोकहित, परिष्कृत आनन्द और भक्तिप्रेरक भावों के अभिनिवेश को ही उसका मूल प्रयोजन माना है । काव्य से प्राप्त होनेवाले आनन्द के बारे में उन्होंने लिखा है : "जिस कविता से जितना ही अधिक आनन्द मिले, उसे उतना ही ऊँचे दरजे की समझना चाहिए । ४ १. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : 'संचयन', पृ० ६६ । २. देवीदत्त शुक्ल : (सं०) 'द्विवेदी - काव्यमाला', पृ० २९५ । ३. 'सरस्वती', मार्च, १९०६ ई०, पृ० ९६ ॥ ४. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : 'संचयन', पृ० १५० ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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