SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गद्यशैली : निबन्ध एवं आलोचना [ १६५ कुमारपाल के विषय में संस्कृत, प्राकृत और गुजराती में अनेक पुस्तकें हैं । प्रस्तुत पुस्तक के सदृश उनके आधार पर भी पुस्तक निकलनी चाहिए । इस पुस्तक की भाषा कुछ गुजरातीपन लिये हुए है, पर समझ में अच्छी तरह आती है । हिन्दीभाषा-भाषी जैनों के लिए ही यह लिखी गई है । लेखक महाशय का यह कार्य प्रशंसनीय है ।" " इस प्रकार, द्विवेदीजी ने अपनी परिचयात्मक आलोचना को हिन्दी की बहुविध उन्नति का माध्यम बनाया एवं प्राचीन नवीन कृतियों की पक्षपात रहित आलोचना करके आदर्श-संस्थापन का युगान्तरकारी कार्य किया । अपने इस महान् उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने पथ की बाधाओं को झेला एवं किसी भी काल की किसी भी रचना को अपनी निष्पक्ष गुणदोष-निर्णायक कसौटी पर ही कसा। डॉ० शंकरदयाल चौऋषि ने लिखा है : “उन्होंने नये और अधकचरे लेखकों की आलोचना ही प्रखरता से नहीं की, वरन् महाकवि कालिदास के दोषों का भी निर्भीकता से उद्घाटन किया । उनकी दोषान्वेषणदृष्टि बहुत सूक्ष्म और प्रबल थी, इसलिए वे आदर्श और मर्यादित साहित्य की सृष्टि कर सके तथा तत्कालीन परिस्थिति में प्रोढ़ तथा व्याकरणसम्मत व्यावहारिक भाषा का शिलान्यास कर सके । १२ सैद्धान्तिक आलोचना : व्यावहारिक समीक्षाओं द्वारा प्राचीन और नवीन साहित्यिक कृतियों में गुणदोषविवेचन करके नये आदर्श स्थापित करने के साथ-ही-साथ द्विवेदी जी ने साहित्यिक मर्यादा के युगानुरूप साहित्यशास्त्र को भी निर्मित किया था । उन्होंने अपनी सिद्धान्तमूलक समीक्षा में साहित्य, काव्य, नाटक आदि से सम्बद्ध सिद्धान्तों का प्रस्तुतीकरण किया है । इस क्रम में उनकी विवेचन पद्धति संस्कृत काव्यशास्त्रियों जैसी आचार्य-पद्धति के अनुरूप ही है । परन्तु, कोरा सिद्धान्त-निरूपण उनका लक्ष्य नहीं रहा । उन्होंने अपने सारे सिद्धान्तों को युगीन परिवेश तथा आवश्यकताओं को दृष्टि में रखकर प्रस्तुत किया, अतः उनकी आचार्य प्रणाली एवं संस्कृत के आचार्यों की सिद्धान्त - निरूपण-पद्धति में स्पष्ट ही एक बड़ा अन्तर था । संस्कृत के आचार्यों ने युगबोध को दृष्टिपथ में नहीं रखते हुए साहित्यिक सिद्धान्तों को प्रस्तुत किया था, परन्तु हिन्दी के वास्तविक आचार्य for महावीरप्रसाद द्विवेदी ने अपने सामाजिक वातावरण के अनुकूल साहित्यिक सिद्धान्तों का ही प्रतिपादन किया। इस क्रम में उनकी चेष्टा हिन्दी में एक स्पष्ट तथा आदर्श साहित्यशास्त्र की स्थापना की रही । इसलिए, वे किसी विशेष वाद या मत के १. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : 'विचार-विमर्श', पृ० २१६ - २१७ । २. डॉ० शंकरदयाल चौऋषि : 'द्विवेदी युग की हिन्दी - गद्यशैलियों का अध्ययन ' पृ० १६० ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy