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________________ १४८ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व सचेष्ट रहे हैं। इन निबन्धो की भाषा को भी उन्होंने सुबोध एवं सरल बनाये रखा है। स्वयं सस्कृत के प्रति आकृष्ट होते हुए भी उन्होने इन निबन्धों में उर्दू-फारसी, अँगरेजी तथा सामान्य व्यवहार में प्रयुक्त होनेवाले शब्दों का उपयोग किया है। इस प्रकार, द्विवेदीजी की वर्णनात्मक अथवा परिचयात्मक निबध-शैली को सरल, बोधगम्य तथा व्यावहारिक शैली के रूप मे स्वीकार किया जा सकता है। __ आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के निबन्धों की दूसरी उल्लेखनीय शैली भावात्मक है। शैली की दृष्टि से भावात्मक कहे जानेवाले निबन्धों में लेखक ने मधुमती कविकल्पना या गम्भीर विचार-मस्तिष्क का सहारा लिये बिना ही वर्ण्य विषय के प्रति अपने भावों को अबाध गति से व्यक्त किया है। इन भावात्मक निबन्धो की प्रधान विशेषता यह है कि उच्च कोटि के कवित्व और मननीय वस्तु का अभाव होते हुए भी इनमे किसी अंश तक काव्य की रमणीयता और विचारों की अभिव्यक्ति एक साथ हुई है। गद्य मे काव्य का आनन्द प्रदान करनेवाले द्विवेदीजी के इन या भावप्रधान निबन्धों की शैली इतनी अधिक काव्यमय है कि कई आलोचको ने इन निबन्धों की चर्चा 'गद्यकाव्य' के रूप मे की है और इन्हीं के आधार पर द्विवेदीजी को 'गद्यकाव्यकार' माना है। श्रीहरिमोहनलाल श्रीवास्तव ने लिखा है : ___ "व्रजभाषा-काव्य की परिधि से हिन्दी-कविता को निकालकर एवं उसे खड़ी बोली का प्रचलित रूप देकर भी आचार्य पं० महावीरप्रसाद द्विवेदीजी ने गद्यकाव्य के सजन में सीधा योग दिया...। उनके समकालीन सरदार पूर्णसिंह, बाबू ब्रजनन्दन सहाय प्रभति लेखकों के गद्य में काव्य का जो उन्माद बिखर रहा है, उसके श्रेय का एक बड़ा अंश निस्सन्देह द्विवेदीजी की है। द्विवेदीजी स्वयं गद्यकाव्य-रचना की ओर ऐसा ध्यान नहीं दे सके । इसका कारण उनकी वह शिक्षात्मक पद्धति रही, जिसके अवलम्बन ने उन्हें युगप्रवर्तक की गौरवपूर्ण पदवी से विभूषित किया । गद्यकाव्यात्मक अभिव्यंजना की चिन्तित विरलता के होते हुए भी आचार्य द्विवेदीजी की रचना-शैली उससे शून्य नहीं, और वह जो कुछ है, वह गद्यकाव्य के क्षेत्र में अपने विशिष्ट स्थान का अधिकारी है।" भाव में सौन्दर्य, लय एवं कोमलता के सुन्दर सम्मिश्रण का एक आदर्श उदाहरण द्रष्टव्य है : "कविता-रूपी सड़क के इधर-उधर स्वच्छ पानी के नदी-नाले बहते हों, दोनों तरफ फलों-फलों से लदे हुए पेड़ हों, जगह-जगह पर विश्राम करने योग्य स्थान बने हों, प्राकृतिक दृश्यों की नई-नई झाँकियाँ आँखों को लुभाती हों। दुनिया में आजतक जितने अच्छे-अच्छे कवि हुए हैं, उनकी कविता ऐसी ही देखी गई है।"२ १. हरिमोहनलाल श्रीवास्तव : 'गद्यकाव्य के उन्नायक', 'भाषा' : द्विवेदी-स्मृति अंक, पृ०७२-७३ । २. आचार्य महावीर प्रसादद्विवेदी : 'रसज्ञरंजन', पृ० ५८ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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