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________________ गद्यशैली : निबन्ध एवं आलोचना [ १२५ न किया ।" और, इसी प्रकार की सीधी-सादी भाषाशैली में वे कथा - चर्चा भी करते थे । 'हंस - सन्देश' जैसे कठिन काव्य की कथा को सरल शब्दों एवं सुन्दर वाक्यों में सजाकर द्विवेदीजी ने इन शब्दों में प्रस्तुत किया है : "मामूली बातें हो चुकने पर हंस ने मतलब की बात शुरू कीं, जिसे सुनने के लिए नल घबरा रहा था । उसने कहा : मित्र, तेरे लिए एक अनन्य साधारण कन्या ढूढ़ में मुझे बड़ी हैरानी उठानी पड़ी। ऊपर जितने लोक है, मत्रकी खाक मैंने छान डाली । पर एक भी सर्वोत्तम रूपवती मुझे न देख पड़ी । तब मैंने ठेठ अमरावती की राह ली 1 हाँ पर भी मैंने एक-एक घर ढूँढ़ डाला ।"२ सरल अभिव्यंजना की यही शैली आचार्य द्विवेदीजी की गद्यशैली का विशेष माधुर्य था । सहज ही सबकी समझ में आ जाने योग्य भाषा का समर्थन द्विवेदीजी ने जिन जोरदार शब्दों में किया था, 3 वे स्वयं उनके आदर्श परिपालक थे । द्विवेदीजी का भाव- प्रकाशन एवं लेखन कौशल सरलता की दृष्टि से उनके युग का आदर्श था ।' गाँवों में कहानी कहनेवाले वक्ता जिस भाँति अपनी रसिक शैली से श्रोताओं को मन्त्रमुग्ध किये रहते है, उसी प्रकार अपनी रोचक शैली द्वारा द्विवेदीजी ने अपनी निपुणता का परिचय दिया । डॉ० श्रीकृष्णलाल ने द्विवेदीजी की इस सरल शैली की तुलना महाकवि गोस्वामी तुलसीदास की कला से की है : "गोस्वामी तुलसीदास के 'रामचरितमानस' में जिस प्रकार पौराणिक कला की पूर्णता मिलती है, उसी प्रकार महावीरप्रसाद द्विवेदी की गद्यशैली में कहानी कहने की पूर्ण पराकाष्ठा है । सर्वसाधारण में हिन्दी - प्रचार-आन्दोलन के नेता के रूप में द्विवेदीजी की अद्भुत सफलता का रहस्य उनकी इस गद्यशैली में निहित है । ४ वैसे, द्विवेदीजी ने विषय के अनुसार शैलियाँ अपनाई हैं । 'सरस्वती' में विविध विषयों की जानकारी कराने के उद्देश्य से जो लेख या टिप्पणियों की सर्जना हुई है, उनमें सरल, व्यावहारिक एवं बोधगम्य भाषाशैली ही अपनाई गई । कभी-कभी विरोध, प्रशंसा, मन्तव्य या समर्थन, संवेदनाशी, आक्षेप और निर्भीकता आदि के स्पष्ट दर्शन भी द्विवेदीजी की शैली में होते हैं । शैली की उग्रता, वक्रता एवं भावात्मकता के १. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : 'मेघदूत', पृ० ३ | २. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी 'रसज्ञरंजन', पृ० ७८ । ३. "जो 'कुछ लिखा जाता है, वह इसी अभिप्राय से लिखा जाता है कि लेखक का हृद्गत भाव दूसरे समझ जायें। यदि इस उद्देश्य ही की सफलता न हुई, लिखना ही व्यर्थ हुआ ।” - आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : 'रसज्ञरंजन', पृ० १० ॥ ४. डॉ० कृष्णलाल : 'आधुनिक हिन्दी साहित्य का विकास', पृ० १०९ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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