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________________ १२२ ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व में हिन्दी-संसार की परिस्थितियाँ विशिष्ट शैली की अभिव्यंजना के अधिक अनुकल नहीं थीं। उस युग में व्यक्तित्व-शून्य सार्वजनिक शैली को ही महत्ता एवं लोकप्रियता मिल सकती थी ! द्विवेदीजी की रचनाओं में इसी कारण उनके व्यक्तित्व का अंश कम दीखता है और जनरुचि के अनुकूल भाषाशैली का प्रवाह उनकी रचनाओं में सर्वत्र दीखता है। लोगों को समझाने में अपने पाण्डित्य को भूलकर पढ़नेवाले के स्तर पर आकर लिखना द्विवेदीजी की लेखन-प्रक्रिया की प्रमुख विशेषता थी। वास्तव में, भारतेन्दु-युग मे द्विवेदी-युग तक हिन्दी का गद्य-लेखन वर्तमान साहित्यिक तर्ककर्कश गरिमा नहीं धारण कर सका था। तर्कपर्ण गम्भीर शैली तो आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के प्रादुर्भाव के बाद हिन्दी में आई। इसके पहले हिन्दी-गद्य के निर्माण एवं संस्कार की सारी प्रक्रियाएँ जनसाधारण के अनुकूल धरातल पर भारतेन्दु एवं द्विवेदीजी प्रभृति युगनेताओं ने सम्पन्न की। भारतेन्दु और उनके बालमुकुन्द गुप्त जैसे अनुयायियों ने निबन्धों में निजी वैयक्तिकता को मुखर किया है, परन्तु उनकी शैली मूलतः जनसाधारण के अनुकूल ही रही। ऐसी ही शैली हिन्टी-साहित्य के आधुनिक काल में प्रथम दो चरणों में गद्य की प्रतिनिधि शैली बनी रही। इसी शैली का संवहन इस अवधि की पत्र-पत्रिकाओं में भी हुआ है । साहित्य-सर्जन भी उन दिनों मुख्य रूप से कविवचनसुधा, हरिश्चन्द्रचन्द्रिका, भारतमित्र, ब्राह्मण, हिन्दी-प्रदीप, सरस्वती, लक्ष्मी आदि पत्रिकाओ में ही सामने आता था । अतएव, हिन्दी-गद्य के इन प्रारम्भिक वर्षों की पत्रकारिता और उसमे अपनाई गई महज बोध-सम्पन्न शैली का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध माना जा सकता है। इस शैली को डॉ. जेकब पी० जॉर्ज ने 'सार्वजनिक गद्यशैली' की संज्ञा दी है और लिखा है : "सार्वजनिक गद्यशैली का आधार है पत्रकारिता, जो पूर्ण रूप से साधारण जनता की चीज हुई। उसका सम्पादक साधारण क्षमतावाला आदमी है, उसका विषय साधारण है, यदि विषय कुछ महत्त्वपूर्ण हुआ, तो भी विवेचन सामान्य ही रहेगा, उसका उद्देश्य है जनसामान्य को प्रभावित करना और इन सबके कारण उसकी शैली भी साधारण रहेगी, जिसे सार्वजनिक गद्यशैली के नाम से अभिहित किया जा सकता है। बोलचाल की बोधगम्य भाषा, स्पष्ट प्रतिपादन एवं सरल-लघु वाक्य-रचना से समन्वित इस शैली में सहजता, साधारणता और स्पष्टता की ही प्रधानता है। श्रीबालमुकुन्द गुप्त ने इस शैली का सफल प्रयोग किया है, परन्तु द्विवेदीजी ने आते ही सार्वजनिक गद्यशैली को विषयानुकूल अधिक सहजता प्रदान की। अपने समय में १. डॉ. जेकब पी० जॉर्ज : 'आधुनिक हिन्दी-गद्य और गद्यकार', पृ० ३७ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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