SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११० ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व अपितु उनकी असाधारण गरिमा का आधार यह है कि उन्होंने अन्य लेखकों को टकसाली भाषा में लिखने की प्रेरणा दी, उनकी लिखी हुई कृतियों का अपेक्षित सुधार किया और उनका मार्गदर्शन करके उन्हे इस योग्य बनाया कि वे कालान्तर में हिन्दी - साहित्य के विख्यात साहित्यकार बन सके । भाषा सम्बन्धी जितना लचरपन उनके सामने आया, उसकी उन्होने अच्छी खोज-खबर ली । जहाँ एक और वे नवीन लेखकों और कवियो को प्रोत्साहित कर निर्माण कार्य में लगाने की चेष्टा करते थे, वहाँ दूसरी ओर उनकी रचना के समस्त दोषों से बचने के लिए कठोर नियन्त्रण और आलोचनाभर करते रहे । दुर्भाग्यवश, उस समय हिन्दी - साहित्य मे पास अच्छे शब्दकोश, व्याकरण एवं मान्य कसौटियों की कमी थी। इस कारण द्विवेदीजी ने निजी लेखन और सम्पादन भी बड़ी सावधानी से किया । उनका लक्ष्य बहुधा भाषा की शुद्धता की ओर रहता था । और, अपने इस लक्ष्य में वे किस सीमा तक सफल हुए, इसका अनुमान पं० विश्वनाथप्रसाद मिश्र की अधोलिखित पंक्तियों से लगाया जा सकता है : "भाषा के परिष्कार मे द्विवेदीजी ने जैसा काम किया, वैसा काम एक ही व्यक्ति ने किसी भाषा में नही किया होगा । जितना शुद्ध उन्होंने अकेले शरीर से किया, उतना किसी हिन्दी के महारथी ने न किया होगा ।" " निश्चय ही, द्विवेदीजी द्वारा किया गया भाषा-संस्कार - विषयक कार्य बड़ा ही अनूठा, ऐतिहासिक एवं महत्त्वपूर्ण है । डॉ० उदयभानु सिंह ने लिखा है : " द्विवेदीजी ने चार प्रकार से भापा-सुधार करके खड़ी बोली के परिष्कृत और परिमार्जित रूप की प्रतिष्ठा की। उन्होने दूसरो के दोषों की तीव्र आलोचना की, सम्पादक पद से 'सरस्वती' के लेखको की रचनाओं का सशोधन किया और कराया, अपने पत्नी, सम्भाषणों, भूमिकाओं और सम्पादकीय निवेदनों द्वारा कवियो और लेखकों को उनके दोषों के प्रति सावधान किया, और साहित्यकारों के ग्रन्थों की भाषा का भी समय-समय पर संशोधन किया । २ द्विवेदीजी ने अपनी कतिपय समीक्षा-पुस्तकों तथा 'सरस्वती' में 'पुस्तक - समीक्षा' स्तम्भ में दूसरों की कृतियों की त्रुटियों की जम कर आलोचना की है । लेखक भाषासम्वन्धी दोषों से बचें, मनमौजी अशोभन प्रयोगो से रचना को भानुमती का पिटारा न बनाये— इस कारण कठोर अनुशासन एवं निर्माण-निर्मम भाषा द्वारा वे उनपर प्रहार करते थे। 'हिन्दी - कालिदास की समालोचना' मे उनकी ओज पूर्ण समीक्षा-शैली दीखती है : "अनुवादक महोदय ने व्याकरण- नियमो की बहुत कम स्वाधीनता स्वीकार की है। कहीं किया है, तो कर्ता नहीं और कर्त्ता है, तो क्रिया नही । कारक चिह्नों की तो अतिश्य १. पं० विश्वनाथप्रसाद मिश्र : 'हिन्दी का सामयिक साहित्य', पृ० २३ । २. डॉ० उदयभानु सिंह : 'महावीरप्रसाद द्विवेदी और उनका युग', पृ० २०५ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy