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________________ १०० ] आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व पाठक, डॉ. महेन्द्रलाल गर्ग, राधाचरण गोस्वामी, शिवचन्द्रजी भरतिया, राय देवीप्रसाद पूर्ण, अयोध्यासिंह उपाध्याय हरिऔध, माधवराव सप्रे, पुरोहित गोपीनाथजी, जनार्दन झा, गौरीदत्त वाजपेयी, नाथूराम शंकर शर्मा, गंगाप्रसाद अग्निहोत्री, शुकदेवप्रसाद तिवारी, मुंशी देवीप्रसाद मुंसिफ, रामचरित उपाध्याय इत्यादि तत्कालीन कवियों-लेखकों ने अपनी रचनाओं से 'सरस्वती' को सुशोभित करना प्रारम्भ कर दिया। परन्तु, द्विवेदीजी ने इस पुरानी पीढ़ी के साहित्यकारों की ही रचनाएँ पाकर सन्तोष नहीं कर लिया। अब भी उनकी रुचि एवं स्तर के अनुरूप लिखनेवाले साहित्यकारों की संख्या हिन्दी-जगत् में थोड़ी थी। अतएव, उन्होंने नये-नये लेखकों का आवाहन किया। जिन लोगों ने उन्हे उत्तर दिया कि 'मुझे हिन्दी नहीं आती', उनसे भी द्विवेदीजी ने बलपूर्वक आग्रह किया और कहा, 'तो क्या हुआ, आ जायगी।' स्पष्ट ही, द्विवेदीजी में गजब की प्रेरणा-शक्ति थी। उनके आग्रह को टालना सरल कार्य नहीं था। वे जिस ढंग से हिन्दी की सेवा करने के लिए नये लेखकों को कहते, उसे टाल्ना सरल कार्य नहीं था और जिस तरह नये लेखकों की प्रेरित करते, पुरानों को आश्वस्त करते तथा अभाओं की ओर संकेत करते थे, वह बहुत मर्मस्पर्शी होता था। यथा : ___ "आइए, तबतक हमी लोग अपनी अल्पशक्ति के अनुसार कुछ विशेषत्वपूर्ण काम करके दिखाने की चेष्टा करें। हमी से मेरा मतलब शिक्षितों के मतानुसार उन अल्पज्ञ और अल्पशिक्षित जनों से है, जो इस समय हिन्दी के साहित्यसेवियों में गिने जाते हैं और जिसमें मैं अपने को सबसे निकृष्ट समझता हूँ।... आवश्यकता इस समय हिन्दी में थोड़ी-सी अच्छी-अच्छी पुस्तकों की है। ... आइए, हमलोग मिलकर भिन्न-भिन्न विषयों की एक-एक पुस्तक लिखने का भार अपने ऊपर ले लें।"१ ___इसी प्रकार के आग्रहपूर्ण पत्र भी द्विवेदीजी ने अनेक हिन्दीभाषी विद्वानों को लिखे। 'सरस्वती' के लेखक-समूह में अपने सम्मिलित होने की कथा श्री श्रीप्रकाश ने इन शब्दों में व्यक्त किया है : "उस समय श्रीहरिभाऊ उपाध्याय 'औडम्बर' नाम की पत्रिका निकालते थे। उन्होंने मेरे पत्र को देखा और उसे अपनी पत्रिका में प्रकाशित कर दिया। संयोगवश द्विवेदीजी ने इसे पढ़ा और बहुत पसन्द किया । द्विवेदीजी का अचानक मुझे पत्र मिला। उन्होंने लिखा कि 'औडम्बर' में आपका लेख पढ़के परमानन्द हुआ, 'सरस्वती' के लिए भी आप लिखिए । इसके बाद ही लेख लिखकर मैंने उनके पास भेजे । हिन्दी में लेख लिखने की प्रेरणा मुझे इसी घटना से मिली ।" १. आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी : 'हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन' (प्रयाग), कार्य विवरण, १९६९, भाग १, पृ० १५८ । २. श्री श्रीप्रकाश : 'महावीरप्रमाद द्विवेदी','भाषा' : द्विवेदी-स्मृति-अंक, पृ. २४ ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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