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________________ द्विवेदी : व्यक्तित्व एवं कर्त्तृत्व =६ ] आचार्य महावीर नम्पादन- कला का चमत्कार सष्ट ही दिखाई पड़ता था । द्विवेदीजी के सम्पादन- काल मे 'सरस्वती' बँगला को छोडकर सभी अन्य देशी भाषाओं की पत्रिकाओं में सर्वश्रेष्ठ थी । नम्पादक द्विवेदीजी एक जागरूक प्रहरी की भाँति अंगरेजी, उर्दू, मराठी. बंगला आदि की अधिक पत्रिकाओं को देखा करते थे । उनमे वे 'मरस्वती' का अगला अक सुशोभित करते थे और जहाँ कहीं कोई नई बात दिखती थी, उससे 'सरस्वती' का अगला अंक सुशोभित हो जाता था । श्रीबाबूराव विष्णु पराड़कर ने द्विवेदीजी की सम्पादन कला की सीमामा करते हुआ लिखा है : "आचार्य द्विवेदी के समय 'सरस्वती' का कोई अंक निकाल देखिए, मालूम होगा कि प्रत्येक लेख, कविता और नोट का स्थान पहले निश्चित कर लिया गया था। बाद मे वे उसी क्रम से मुद्रक के पास भेजे गये । एक भी लेख ऐसा न मिलेगा, जो बीच मे डाल दिया गया- मा मालूम हो । सम्पादन की यह कला बहुत ही कठिन है और एक को ही मिद्ध होती है । द्विवेदीजी को सिद्ध हुई थी और इसी से 'सरस्वती' का प्रत्येक अंक अपने रचयिता के व्यक्तित्व की घोषणा अपने अंग-प्रत्यंग के मामंजस्य से देता है । मैने अन्य भाषाओं के मासिकों में यह भी विशेषता बहुत कम पाई है और विशेषकर इसी के लिए मैं स्वर्गवासी पण्डित महावीरप्रसाद द्विवेदी को सम्पादकाचार्य मानता हूँ ।" " द्विवेदीजी ने 'सरस्वती' में चित्रों को प्रकाशित करने की सुन्दर परम्परा जीवित रखी । उन्होंने पाठकों के बौद्धिक एव आत्मिक विकास के उद्देश्य से विभिन्न सादे एवं रंगीन चित्रों द्वारा 'सरस्वती' को अलंकृत किया । प्राकृतिक दृश्यों और धार्मिक प्रगों पर आधृत तथा सामाजिक, ऐतिहासिक, साहित्यिक एवं काव्य में वर्णित विभिन्न विषयो पर आधृत रंगीन चित्रों का संकलन 'मरस्वती' के तत्कालीन अंकों मे मिलता है । इसी तरह लेखों के उदाहरण के रूप में स्थानों और व्यक्तियों आदि के वादे चित्र भी उसी समय ने 'सरस्वती' में प्रकाशित होने लगे । इण्डियन प्रेम में ही 'मॉर्डन रिव्यू' तथा 'प्रवासी' की भी छाई होनी थी, इस कारण द्विवेदीजी 'सरस्वती' के लिए इन दोनो पत्रिकाओं में प्रकाशित चित्रों का पुनर्मुद्रण करवा लेते थे । २ रचनाओं को चित्र के साथ छापने की ओर उनका विशेष ध्यान था । परन्तु वे १. श्रीबाबूराव विष्णु पराड़कर : 'सम्पादकाचार्य द्विवेदीजी', 'साहित्य-सन्देश', द्विवेदी - अंक | २. उन्होने कामताप्रसाद गुरु की 'शिवाजी' शीर्षक कविता को सचित करने के लिए लिखा था : 'मई सन् १९०७ ई० के मॉडर्न रिव्यू के ४३८ पृष्ठ पर जो शिवाजी का चित्र है, वह इसके साथ छापिए ।' • म० प्र० - 'सरस्वती' की हस्तलिखित प्रतियाँ, नागरी प्रचारिणी सभा ।
SR No.010031
Book TitleAcharya Mahavir Prasad Dwivedi Vyaktitva Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShaivya Jha
PublisherAnupam Prakashan
Publication Year1977
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Biography, & Literature
File Size26 MB
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