SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ namruwanri.inmammranramanna प्रथम पर्व ६ . आदिनाथ-चरित्र गया। मुनि को नमस्कार कर के और वहाँ से उठकर वह तत्काल अपने स्थान को गया। वहाँ पहुँचते ही उसने अपने पुत्र को राजगद्दी पर बिठा कर सुबुद्धि से कहा कि, मैं दीक्षा ग्रहण करूँगा। इसलिए मेरी तरह ही मेरे पुत्र को भी तुम नित्य धर्मोपदेश देते रहना। सुबुद्धि ने कहा-'महाराज! मैं भी आप के साथ वृत ग्रहण करूँगा और मेरी तरह मेरा पुत्र आप के पुत्र को धर्मोपदेश सुनावेगा।' इसके बाद राजा और सुबुद्धि मन्त्रीने कर्मरूपी पर्वत के भेदने में वज्र के समान व्रत ग्रहण किया और दीर्घकाल तक उसका पालन करके मोक्ष लाभ किया। हे राजन! तुम्हारे वंश में दूसरा एक दण्डक नाम का राजा हुआ है। उस राजा का शासन प्रचण्ड था और वह शत्रु ओं के लिए साक्षात् यमराज था। उसके मणिमाली नाम का एक प्रसिद्ध पुत्र था। वह अपने तेज से, सूर्य की तरह, दशों दिशाओं को प्रकाशित करताथा । दण्डक राजपुत्र, मित्र, स्त्री, रत्न. सुवर्ण और धन में अत्यन्त फंसा हुआ था। वह इन सबको अपने प्राणों से भी अधिक चाहता था। आयुष्य पूर्ण होने पर, आर्तध्यान में ही लगा रहनेवाला वह राजा, मरकर, अपने ही भण्डार में दुर्धर देखिये। मनुष्य-मात्र के देखने योग्य ग्रथ है। उसमें ऐसे-ऐसे भावपूर्ण २६ चित्र हैं, जिनके देखने मात्र से अभिमानियों का मद ज्वर की तरह उतर जाता है, संसार स्वप्नवत् प्रतीत होता है और विषय विषवत् बुरे लगने लगते हैं। पृष्ठ-संख्या ४८० सुनहरी अक्षरों की रेशमी जिलद-बंधी पुस्तक का मूल्य ५) डाक-खर्च ।
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy