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________________ आदिनाथ-चरित्र ५४ प्रथम पर्व रहित पुरुष भी अच्छा नहीं लगता-बुरा मालूम होता है। चक्रवर्ती भी यदि अधमी होता है, तो उसको पर भव में ऐसा जन्म मिलता है, जिस में खराब अन्न भी राज्य-लक्ष्मी के समान समझा जाता है। यदि मनुष्य बड़े कुल में पैदा होकर भी धर्मोपार्जन नहीं करता है ; तो दूसरे भव में, कुत्ते की तरह, दूसरे के जूठे भोजन को खाने वाला होता है। ब्राह्मण भी यदि धर्म-हीन होता है, तो वह नित्य पाप का बन्धन करता है और बिल्ली के समान दुष्ट चेष्ठा वाला होकर म्लेच्छ-योनि में जन्म लेता है। धर्म-हीन भव्य प्राणी भी बिल्ली, सर्प, सिंह, बाज़ और गिद्ध प्रभृति की नीच योनियों में अनेकानेक जन्मों तक उत्पन्न होता और वहाँ से नरक में जाता है और वहाँ, मानो वैर से कुपित हो रहे हों ऐसे, परमाधार्मिक देवताओं से अनेक प्रकार की कदर्थना पाता है। सीसे का गोला जिस तरह अग्नि में पिघलता है ; उसी तरह अनेक व्यसनों की आवेग रूपी अग्नि के भीतर रहने वाले अधर्मी प्राणियों के शरीर क्षीण होते रहते हैं । अतः ऐले प्राणियों को धिक्कार है ! परम बन्धु की तरह, धर्म से सुख की प्राप्ति होतीहै। नाव की तरह, धर्म से आपत्ति रूपी नदियाँ पार की जा सकती हैं । जो धर्मोपार्जन में तत्पर रहते हैं, वे पुरुषों में शिरोमणि होते हैं। लताएँ जिस तरह वृक्षों का आश्रय लेती हैं: सम्पत्तियाँ उसी तरह धर्मात्माओं का आश्रय ग्रहण करती हैं ; यानी लक्ष्मी धर्मात्माओं के पास आती है। जिस तरह जल से अग्नि नष्ट हो जाती है ; उसी तरह धर्म से आधि, व्याधि और उपाधि, जोकि पीड़ा की
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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