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________________ प्रथम पर्व ४७ आदिनाथ-चरित्र पुण्य-योग से ही मिलते हैं। जो अपने मनुष्यभव का फल ग्रहण नहीं करता, वह बस्तीवाले शहर में चोरों से लुटे हुए के समान है। इसवास्ते कवचधारी महाबल कुमार को राज्य-भार सौंप कर-उसे गद्दी पर बिठाकर, मैं अपनी इच्छा पूरी करूँ।' मन-हीमन ऐसे विचार करके, राजा शतबल ने अपने पुत्र-कुमार महाबल—को अपने निकट बुलवाया और उस विनीत-नम्र, सुशील राजकुमार को राज्य-भार ग्रहण करने-राजकी बागडोर अपने हाथों में लेने का आदेश किया। महात्मा पुरुष गुरुजनों की आज्ञा भंग करने में बहुत डरते हैं, इस काम में वे पूरे कायर होते हैं; अतः राजकुमार ने, पिता की आज्ञा से, राजकाज हाथ में लेना और चलाना मंजूर कर लिया। राजा शतबलने, कुमार को सिंहासनारूढ़ करके, उसका अभिषेक और तिलक-मंगल अपने ही हाथों से किया। मुचकुन्द के पुष्पों की सी कान्तिवाले चन्दन के तिलक से, जो उसके ललाट पर लगाया गया था, नवीन राजा ऐसा सुन्दर मालूम होता था, जैसा कि चन्द्रमा के उदय होनेसे उदयाचल मालूम होता है। हंस के पंखों के समान, पिता के छत्र के सिरपर फिरने से वह ऐसा शोभने लगा, जैसा कि शरद् ऋतु के बादलों से गिरिराज शोभता है । निर्मल बगुलों की जोड़ी से मेघ जैसा शोभता है, दो सुन्दर चलायमान चँवरों से वह वैसा ही शोभने लगा। चन्द्रोदय के समय, समुद्र जिस तरह गम्भीर गरजना करने लगता है ; उसके अभिषेक के समय, दशों दिशाओं को गुंजाने वाली, मंगल ध्वनि उसी तरह गम्भीर शब्द
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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