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________________ आदिनाथ-चरित्र प्रथम पर्व स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र,-ये पाँच इन्द्रियाँ हैं। स्पर्श, रस, गन्ध, रूप और शब्द-ये अनुक्रम से इन्द्रियों के विषय हैं। कृमि, शंख, जौंक, कौड़ी, सीप एवं छीपो वगेरः विविध आकृति वाले प्राणी 'द्वीन्द्रिय' कहलाते हैं। ज, मकड़ी, चींटी, और लीख वगेरः को 'त्रीन्द्रिय जन्तु' कहते हैं। पतंग, मक्खी, भौंरा और डाँस प्रभृति 'चार इन्द्रिय वाले हैं। बाकी जलचर, थलचर, नभचर पशु-पक्षी, नारकी, मनुष्य और देव-इन सब को 'पञ्चेन्द्रिय जीव' कहते हैं। इतने प्रकार के जीवों के पर्याय यानी आयुष्य कोक्षय करना, उन्हें दुःख देना और क्लेश उत्पन्न करना,तीन प्रकार का वध' कहलाता है। इन तीनों प्रकार के जीववध को त्याग देना-'अभय-दान' कहलाता है। जो अभय-दान देता है, वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष-इन चारों पुरुषार्थों को देता है ; क्योंकि वध से बचा हुआ जीव, यदि जीता है, तो, चार पुरुषार्थ प्राप्त कर सकता है, यानी जीव का जीवन रहने से उसे चार पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। प्राणी को राज्य, साम्राज्य और देवराज्य की अपेक्षा जीवित रहना अधिक प्यारा है; इसीसे अशुचि या नरक में रहने वाले कीड़े और स्वर्ग में रहने वाले इन्द्र, दोनों को ही प्राणनाश का भय समान है। इसवास्ते, बुद्धिमान पुरुष को, निरन्तर, सब जगत के इष्ट अभयदान में, अप्रमत्त होकर, प्रवृत्त होना चाहिए। - अभयदान देनेसे मनुष्य परभव या जन्मान्तर में मनोहर, दीर्घायु, आरोग्यवान, रूपवान, लावण्यवान और बलवान होता है।
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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