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________________ आदिनाथ चरित्र प्रथम पर्व पिता बन्धु की वाला है। धर्म माता की तरह पालन-पोषण करता है, की तरह रक्षा करता है, मित्र की तरह प्रसन्न करता है, तरह स्नेह रखता है, गुरु की तरह उज्ज्वल गुणों का समावेश कराता है और स्वामी की तरह उत्कृष्ट प्रतिष्ठा प्राप्त कराता है । वह सुखका महा हर्म्य है, शत्रु- संकट में वर्म है, शीत से पैदा हुई जड़ता के नाश करने के लिए धर्म और पाप के मर्म को जानने वाला है । धर्म से जीव राज़ी होता है, धर्म से बलदेव होता है, धर्म से अर्द्धचक्री - वासुदेव होता है, धर्म से चक्रवर्ती होता है, धर्म से देव और इन्द्र होता है, धर्म से ग्रैवेयक और अनुत्तर विमान में अहमिंद्र देवत्व मिलता है; धर्म से तीर्थङ्कर-पद तक मिल जाता । जगत् में, धर्म से सब तरह की सिद्धियाँ मिलती हैं। चार प्रकार का धर्म । दुर्गति में पड़े हुए जन्तुओं को धारण करता है, इस से उसे 'धर्म' कहते हैं । वह धर्म-दान, शील, तप और भाव के भेदसे चार प्रकार का है। धर्मके चार भेदों में जो 'दान धर्म' है, वह ज्ञान-दान, अभयदान और धर्मोपग्रह दान, इन नामों से तीन प्रकार का कहा है। ज्ञान-दान । धर्म को नहीं जानने वाले लोगों को देशना - उपदेश देने, बाचना देने अथवा ज्ञान प्राप्ति के साधन देने को 'ज्ञान-दान' कहते हैं । इस से प्राणी को अपने हिताहित या भले-बुरे का ज्ञान हो जाता है और जीव आदि तत्त्वों को जान जानेसे विरक्ति हो जाती है। ज्ञानदान से प्राणीको उज्ज्वल 'केवल - ज्ञान' ३४
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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