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________________ आदिनाथ चरित्र ५४४ प्रथम पर्व हो गया है। हे नाथ! जो आपकी विश्वोपकारिणी देशनाको - स्मरण करते हैं, उन भव्य प्राणियोंको आप आज भी प्रत्यक्ष ही दिखाई पड़ते हैं। जो आपके रूपको ध्यान करते हैं, उन्हें भी आप प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं । हे परमेश्वर ! जैसे आपने ममता - रहित होकर इस सारे संसारको त्याग दिया है, वैसेही कभी मेरे मनका भी त्याग न कर दें । इस प्रकार आदीश्वर भगवान्‌की स्तुति करनेके बाद अन्य जिनेन्द्रोंको नमस्कार कर, उन्होंने प्रत्येक तीर्थङ्कर की इसप्रकार स्तुति की, “हे विषय कषायोंसे अजित, विजयामाताकी कोखके माणिक और जितशत्रुराजाके पुत्र, जगत्स्वामी अजीतनाथ ! तुम्हारी जय हो । “हे संसार रूपी आकाशको अतिक्रमण करनेमें सूर्य के समान, श्रीसेना देवीके उदरसे उत्पन्न, जितारि राजाके पुत्र सम्भवनाथ ! मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ । C “ हे संवर- राजाके बंशके आभूषण स्वरूप, सिद्धार्था देवीरूपिणी पूर्व-दिशा के सूर्य और विश्वके आनन्ददायक अभिनन्दन स्वामी तुम मुझे पवित्र कर दो । 66 हे मेघराजाके वंशरूपी वनमें मेघ के समान और मङ्गलामाता- रूपिणी मेघमाला में मोतीके समान सुमतिनाथजी ! मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ । 66 'हे घर- राजा-रूपी समुद्रके लिये चन्द्रमाके समान और सुसीमा देवी रूपिणी गङ्गानदीमें उत्पन्न कमलके समान पद्मप्रभु ! मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ। 6
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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