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________________ प्रथम पर्व -५४१ आदिनाथ - चरित्र था। मानों माणिक्य जड़ी हुई मुद्रिका पहने हुए हो। कहीं तो पल्लवित होता हुआ, कहीं कवच धारण किये, कहीं रोमाञ्चित बना हुआ और कहीं किरणोंसे लिप्त मालूम पड़ता था । गोशीर्ष - चन्दन 'के इसके तिलक से वह जगह-जगह चिह्नित किया गया था। उसको सन्धियाँ इस कारीगरीसे मिलायी गयी थीं, कि सारा मन्दिर एक ही पत्थरका बना हुआ मालूम पड़ता था । . उस चैत्यके नितम्ब - भागपर अपनी विचित्र चेष्शसे बड़ी मनोहर दीखती हुई माणिककी 'पुतलियाँ बैठायी हुई थीं। इससे वह ऐसा मालूम होता था, मानों अप्सराओंसे अधिष्ठित मेरुपर्वत हो । उससे द्वारके दोनों ओर चन्दन से लेपे हुए दो कुम्भ रखे हुए थे। उनसे वह ऐसा मालूम होता था, मानों द्वार- स्थलपर दो पुण्डरीक-कमल उग आये हों और उस की शोभाको बढ़ा रहे हों । धूपित करके तिरछी बाँधी हुई लटकती मालाओं से वह रमणीय मालूम होता था। पंचरंगे फूलोंसे उसके तलभागपर मण्डल भरे हुए थे। जैसे यमुना नदीसे कलिन्दपर्वत सदा प्लावित होता रहता है, वैसेही कपूर, अगर और कस्तूरीसे बने हुए धूपके धूप से वह भी सदैव व्याप्त रहता था । आगे-पीछे और दाहिने- बाँयें सुन्दर चैत्यवृक्ष और माणिककी पीठिकाएँ बनी हुई थीं। इनसे वह ऐसा मालूम होता था, मानों गहने पहने हुए हों और अपनी पवित्रताके कारण वह ऐसी शोभायमान दीखता था, मानो अष्टापदपर्वतके शिखरपर मस्तकक मुकुटका माणिक्य-भूषण हो तथा नन्दीश्वरादि चेत्योंकी स्पर्द्धा कर रहा हो । G
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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