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________________ ~ ~ आदिनाथ-चरित्र ५२२ प्रथम पर्व पर रहने वाले बन्दरोंकी पूंछोंसे वेष्टित इमलीके वृक्ष पीपल और बड़के वृक्षोंका भ्रम उत्पन्न कर रहे थे। अपनी अद्भुत विशालता की सम्पत्तिसे मानों हर्षित हुए हों, ऐसे निरन्तर फलनेवाले पनस वृक्षोंसे वह पर्वत शोभित हो रहा था। अमावस्याकी रात्रिके अन्धकारकी भाँति श्लेष्मान्तक वृक्षसे वह पर्वतं ऐसा मालूम होता था, मानों वहाँ अञ्जनाचलकी चोटियाँ ही चली आयी हों । तोतेकी चोंचकी तरह लाल फूलोंवाले केसुड़ीके वृक्षोंसे वह पर्वत लाल तिलकोंसे सुशोभित हाथीकी तरह शोभायमान मालूम होता था। कहीं दाखकी, कहीं खजूर की और कहीं ताड़ की ताड़ी पीनेमें लगी हुई भीलोंकी त्रियाँ उस पर्वतके ऊपर पानगोष्ठी जमाये रहती थीं। सूर्यके अचूक किरणरूपी बाणोंसे अभेद्य ताम्बूल-लताके मण्डपों से वह पर्वत कवचावृत्तसा मालूम होता था। वहाँ हरी-हरी दूबोंको खाकर हर्षित हुए मृगोंका समूह बड़े-बड़े वृक्षोंके नीचे बैठकर जुगाली करता रहता था । मानों अच्छी जातिके वैडूर्य-मणि हों, ऐसे आम्र-फलोंके स्वादमें जिनकी 'चोंचें मग्न हो रही हैं, ऐसे शुक पक्षियोंसे वह पर्वत बड़ा मनोहर दिखाई देता था। चमेली, अशोक, कदम्ब, केतकी और मौलसिरीके वृक्षोंका पराग उड़ाकर ले आनेवाले पवनने उस पर्वत• की शिलाओंको रजोमय बना दिया था और पथिकोंके फोड़े हुए नारियलोंके जलसे उसके ऊपरकी भूमि पंकिल हो गयी थी ।मानों भद्रशाल आदि वनमें से ही कोई वन यहाँ लाया गया हो, ऐसे अनेक. बड़े-बड़े वृक्षोंसे शोभित धनके कारण वह पर्वत बड़ा सुन्दर
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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