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________________ प्रथम पर्व ५१६ -आदिनाथ चरित्र' धीरे शुद्धिको प्राप्त हो जायेगा। इसके बाद वह पहले तो इस भरतक्षेत्रके पोतनपुर नामक नगरमें त्रिपृष्ठ नामका प्रथम वासुदेव होगा। पीछे पश्चिम महाविदेहमें धनंजय और धारिणी नामक दम्पतीका पुत्र प्रियमित्र नामक चक्रवर्ती होगा। तदनन्तर बहुत दिनों तक संसारमें भ्रमण करनेके बाद इसी भरतक्षेत्रमें महावीर नामका चौबीसवाँ तीर्थङ्कर होगा।" यह सुनस्वामीकी आज्ञा ले, भरतराजा भगवानकी ही भांति मरिविकी वन्दना करने गये । वहाँ जाकर उसको वन्दना करते हुए भरतने उससे कहा,-"तुम त्रिपृष्ट नामक प्रथम वासुदेव होगे - थवा महाविदेहक्षेत्रमें प्रियमित्र नामके चक्रवर्ती होंगे, यह जानकर मैं तुम्हारे वासुदेव-पद या चक्रवर्तित्वको सिर नहीं झुकाता और न तुम्हारे परिव्राजकपनेकी ही वन्दना करता हूँ; बल्कि तुम चौबीसवें तीर्थङ्कर होगे, इसीसे मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।" यह कह, हाथ जोड़, प्रदक्षिणा कर, सिर झुकाकर भरतेश्वरने मरीचिकी वन्दना की। इसके बाद पुन: जगत्पतिकी वन्दना कर, सर्पराज जैसे भोगवती-पुरीमें चला जाता है, वैसेही भरतराजाभी अयोध्या नगरीमें चले आये। भरतेश्वरके चले जाने बाद, उनकी बातें सुनकर प्रसन्न बने हुए मरिचिने तीन बार तालियाँ बजायीं और अधिक हर्षित हो, इस प्रकार कहना आरम्भ किया,-"अहा! मैं सब वासुदेवोंमें पहला हूँगा, विदेहमें चक्रवर्ती हूँगा,सबसे पिछला तीर्थंकर हूँगा,अब बाकी क्या रहा? सब अर्हन्तोंमें मेरे दादाही आदि-तीर्थंकर
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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