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________________ प्रथम.पवे ४६१ आदिनाथ-चरित्र उनका वह सिंहनाद चारों दिशाओं में व्याप्त हो गया। साथ. ही ऐसा मालूम पड़ा, मानों वह युद्ध देखनेके लिये आये हुए देवताओंके विमान गिरा रहा हो,आकाशके ग्रह-नक्षत्रों और ताराओंको अपनी जगहसे हटा रहा हो, कुल पर्वतोंके ऊँचे ऊंचे शिखरोंको हिला रहा हो और समुद्रके जलमें खलबली पैदा कर रहा हो। वह सिंहनाद सुनतेही रथके घोड़े वैसेही रासकी परवा नहीं करने लगे, जैसे दुष्टबुद्धिवाले मनुष्य बड़ोंकी आज्ञाकी परवा नहीं करते ; पिशुन लोग जैसे सद्वचनको नहीं मानते, वैसे ही हाथी अंकुशको नहीं मानने लगे; कफ रोगवाले जैसे कड़वे पदार्थको नहीं मानते, वैसेही घोड़े लगामकी परवा नहीं करने लगे; कामी पुरुष जैसे लजाको नहीं मानते, वैसेही ऊँट नकेलोंको कुछ नहीं समझने लगे और भूत लगे हुए प्राणीकी तरह खच्चर अपने ऊपर पड़ती हुई चाबुकोंकी मारको भी कुछ नहीं समझने लगे। इस प्रकार चक्रवर्ती भरतके सिंहनादको सुनकर कोई स्थिर न' रह सका। इसके बाद बाहुबलीने भी बड़ा भयङ्कर सिंहनाद किया। वह आवाज़ सुनते ही सर्प नीचे उतरे हुए गरुड़के पंखों की आवाज़ समझकर पातालसे भी नीचे घुस जानेकी इच्छा करने लगे। समुद्रके बीचमें रहनेवाले जल-जन्तु वह आवाज सुन, समुद्र में प्रवेश किये हुए मन्दराचलके मथनकी आवाज़ समझ कर डर मये; कुल पर्वत, उस ध्वनिको सुनकर बारम्बार इनके छोड़े हुए वज्रकी आवाज़ समझ, अपने नाशकी आशङ्कासे कांपने लगे । मृत्यु-लोकवासी सारे मनुष्य वह शब्द सुन, प्रलयके
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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