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________________ प्रथम पव ४५३ आदिनाथ चरित्र ही उचित है । फिर तो इन्द्र भी आपको युद्ध में जाने से नहीं रोक सकते । जो हो, आप दोनों ही श्रीॠषभस्वामी के संसर्गसे सुशोभित हैं; बड़े बुद्धिमान हैं, विवेकी हैं, जगत्के रक्षक हैं और साथ ही दयालु भी हैं । परन्तु चूँकि संसारके भाग्यका क्षय हो गया है, इसीलिये यह युद्धरूपी उत्पात उठ खड़ा हुआ है। तो भी हे वीर ! प्रार्थना पूर्ण करनेमें कल्पवृक्षके समान आपसे हमलोग एक प्रार्थना करते हैं और वह यह, कि उत्तम युद्ध करें, अधम युद्ध नहीं; क्योंकि उग्र तेजवाले आप दोनों भाई यदि अधम युद्ध करने लगेंगे, तो बहुत से लोगोंका प्रलय हो जायेगा और अकालमें ही प्रलय हुआ मालूम पड़ने लगेगा इसलिये आप दोनोंके युद्धमें दृष्टि आदिका युद्ध होना चाहिये। इससे आपका भी मान रह जायेगा और लोगों का प्रलय भी न होगा ।" बाहुबलीने इस बातको मान लिया तब उनका युद्ध देखनेके लिये नगरके लोगों के समान देवता भी पासमें आकर खड़े हो रहे । । इसके बाद बाहुबलीकी आज्ञासे एक बलवान् प्रतिहार हाथी पर बैठकर गजके समान गर्जना करता हुआ अपने सेनिकोंसे कहने लगा, "हे वीर योद्धाओं ! चिरकालसे चिन्तित तुम्हारे वाञ्छित पुत्र लाभ के भाँति तुम्हें स्वामीका कार्य करनेका अवसर प्राप्त हुआ था। परन्तु तुम्हारे अल्प-पुण्यके कारण हमारे बलवान् राजासे देवताओंने प्रार्थना की है, कि भरतके साथ द्वन्द्व-युद्ध कीजिये। एक तो स्वामी स्वयं द्वन्द्व-युद्ध करना चाहते हैं, तिस पर देवताओंका अनुरोध होगया। फिर क्या कहना हैं ? इस ---
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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