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________________ प्रथम पर्व ४२३ आदिनाथ-चरित्र सिंहको पकड़ मँगवानेकी तरह इस बाहुबलीको सेवाके लिये बुलवाया। स्वामीके हितको माननेवाले मंत्रियों और मुझको धिक्कार है, जो हम लोगोंने इस मामलेमें शत्रुकी तरह उनकी उपेक्षा की। लोग यही कहेंगे कि सुवेगने ही जाकर भरतसे बाहुबलीकी लड़ाई छिड़वायो । ओह ! गुणको दूषित करनेवाले इस दूतपनको धिक्कार है !" रास्ते भर इसी प्रकार विचार करता हुआ, नीति-निपुण सुवेग कितने ही दिन बाद अयोध्या-नगरीमें आ पहुँचा । द्वारपाल उसे सभामें ले गया। वह प्रणाम कर हाथ जोड़े हुए बैठा ही था, कि महाराजने उससे बड़े आदरके साथ पूछा, “सुवेग ! मेरा छोटा भाई बाहुबली कुशल से है न ? तुम वहाँ से बड़ी जल्दी चले आये, इससे मुझे बड़ी चिन्ता हो रही है। अथवा उसने तुम्हें खदेड़ दिया है, इसीलिये तुम झटपट चले आए हो ? क्योंकि यह वीरवृत्ति तो मेरे बलवान् भ्राताके योग्य ही है।" सुवेगने कहा,- "हे महाराज! आपके ही समान अतुल पराक्रम वाले उन बाहुबली राजाकी बुराई करनेको देव भी समर्थ नहीं है। वे आपके छोटे भाई हैं, इसीलिये मैंने पहले उनसे स्वामीकी सेवा करनेके लिये आनेको विनय-पूर्वक हितकारी वचन कहा ; इसके बाद औषधकी तरह कड़वे,पर परिणाममें उपकारीतीखे वचन कहे ; पर क्या मीठे, क्या कड़वे, किसी तरहके वाक्यों से वे आपकी सेवा करनेको नहीं तैयार हुए। जैसे सन्निपातके रोगीको दवा थोड़े ही असर करती है ? वह बलवान् बाहुबली
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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