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________________ आदिनाथ-चरित्र ४०२ प्रथम पर्व इस जगत्में एक दुर्जेय पुरुष आपके जीतने योग्य बाकी रह गया है। वह है, ऋषभस्वामीका पुत्र और आपका छोटा भाई बाहुबली। वह महाबलवान् है और बड़े-बड़े बलवानोंका बल तोड़ देनेवाला है। जैसे एक ओर सारे अस्त्र और दूसरी ओर अकेला वन बराबर होता है, वैसेही एक ओर समस्त राजागण और दूसरी तरफ़ बाहुबली बराबर है। जैसे आप श्रीऋषभदेवके लोकोत्तर पुत्र हैं, वैसा ही वह भी है। यदि आपने उसे नहीं जीता, तो समझ लीजिये, कि किसीको नहीं जीता, यद्यपि इस समय इस भरतखण्डमें आपके समान कोई पुरुष नहीं दिखलाई देता, तथापि उसे जीत लेनेसे आपका बड़ा उत्कर्ष होगा। वह बाहुबली आपकी जगत् भरसे मानी जाने वाली आज्ञाओंको नहीं. मानता, इसी लिये यह चक्र उसके पराजित होनेके पहले शर्मके मारे नगरमें जाना नहीं चाहता। रोगकी तरह अन्य शत्रुकी भी उपेक्षा करनी उचित नहीं, इस लिये आप बिना विलम्ब उसे जीत. लेनेका यत्न कीजिये।" 1. मन्त्रोके ऐसे वचन सुन, दावानल और मेघोंकी वृष्टिमें पर्वत की तरह एकही समय कोप और शान्तिसे युक्त होकर भरतेश्वर ने कहा,--"एक ओर तो यह बात बड़ी लजाकी मालूम पड़ती है, कि अपना छोटा भाई, मेरी आज्ञा नहीं मानता और दूसरी ओर छोटे भाईके साथ लड़नेको मेरा जी नहीं चाहता। जिसका हुक्म अपने घर वाले ही नहीं मानते उसकी आज्ञा बाहर भी उपहासजनक ही होती है। उसी प्रकार मेरे छोटे भाईको इस
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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