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________________ ४०० आदिनाथ-चरित्र प्रथम पर्व वह दोना ऊपर आते-न-आते उसका सारा जल बह गया। तो भी जैसे भिक्षुक तेलसे भीगे हुए कपड़ेको निचोड़ कर खाता है, वैसे ही वह दोनेको निचोड़ कर पीने लगा। परन्तु जो तृषा समुद्रका जल पो कर भी नहीं मिटी, वह दोनेके निचोड़े हुए जल से कैसे मिट सकती थी ?" इसी तरह तुम्हारी स्वर्गके सुखोंसे भी नहीं मिटने वाली तृष्णा राजलक्ष्मीसे ही क्योंकर मिट सकती है ? इसलिये पुत्रों ! तुम जैसे विवेकी मनुष्योंको चाहिये, कि अमन्द आनन्दके झरनेके समान और मोक्ष प्राप्तिके कारण-स्वरूप संयमके राज्यको ग्रहण करो।" स्वामीकी यह बात सुन उनके उन १८ पुत्रोंको तत्काल वैराग्य उत्पन्न हुआ और उन्होंने उसी समय भगवान्से दीक्षा ले ली। “अहा ! इनका धैर्य, सत्त्व और वैराग्य बुद्धि भी कैसी अपूर्व है ।" ऐसा विचार करते हुए वे दूत लौट गये और उन्होंने चक्रवर्तीसे यह सब हाल कह कर सुनाया। इसके बाद जैसे तारापति चन्द्रमा सब ताराओंकी ज्योतिको स्वीकार कर लेता है, सूर्य जैसे सब अग्नियोंके तेजको स्वीकार करता है और समुद्र सारी नदियोंके जलको स्वीकार कर लेता है, वैसे ही चक्रवर्तीने उन सबके राज्योंको स्वीकार कर लिया।
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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