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________________ प्रथम पर्व आदिनाथ-चरित्र कमठेघरणेन्द्रे च, स्वोचितं कर्म कुर्वत । प्रभुस्तुल्यमनोवृत्तिः, पार्श्वनाथ श्रियेऽस्तु वः ||२५|| ૨૭ अपने अपने स्वभाव के अनुसार आचरण करनेवाले कमठ नामक दैत्य और धरणेन्द्र नामक असुरकुमार - वैरी और सेवक पर जिनकी मनोवृत्ति समान रही, वही भगवान् पार्श्वनाथ तुम्हारी सम्पत्ति के कारण हों ! खुलासा - पूर्वभव में भगवान् पार्श्वनाथने धरणेन्द्र की अग्नि से रक्षा की थी, इससे इस जन्म में वह उनकी भक्ति करता और उपसर्ग बचाता था; किन्तु कमठ उनका वैरी था; वह उपसर्ग करता था यानी उनपर श्रापदायें लाता था, पर भगवान् समदर्शी थे, उनकी नजरों में शत्रु-मित्र समान थे, वे शत्रु और सेवक दोनों पर समभाव रखते थे | ग्रन्थकार कहता है, वेही समदर्शी भगवान् पार्श्वनाथ तुम्हारी सुख-सम्पत्ति की वृद्धि करें - तुम्हारा कल्याण करें ! कृतापराधेऽपिजने, कृपामन्थर तारयोः । ईषद्वाष्पादयोर्भद्रं, श्रीवीर जिननेत्रयोः ||६|| श्रीमहावीर प्रभु में दया की मात्रा इतनी अधिक थी, कि उन्हें पूर्ण रूप से सताने और दुःख देनेवाले 'संगम' नामक देव ॐ एक समय महावीर भगवान् तप करते थे । उस समय संगम नामक देवने उन पर ६ मास तक उपसर्ग किया; मगर प्रभु विचलित न हुए। कढ़ता देख कर, देवने स्वर्ग जाने की इच्छा से कहा - ' "हे २ भग देव !
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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