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________________ प्रथम पर्व आदिनाथ चरित्र फेंकते हुए महाराजने यक्षपति कुवेर जिस तरह . कैलाशमें प्रवेश करते हैं: उसी तरह उत्सवके साथ राजमहलमें प्रवेश किया । वह क्षणभर पूरबकी तरफ मुँह करके सिंहासन पर बैठे और कितनी ही सत्कथाएँ करके स्नानागार या गुशलखाने में गये। हाथी जिस तरह सरोवरमें स्नान करता है, उसी तरह स्नान करके परिजनोंके साथ अनेक प्रकारके रसोंवाले आहारका भोजन किया। पीछे योगी जिस तरह योग में काल निर्गमन करता है—समय बिताता है; उसी तरह राजा ने नवरस पूर्ण नाटकों और मनोहर संगीतमें कितनाही समय बिताया | ३८३ चक्रवर्तीका राज्याभिषेकोत्सव | एक समय सुरनरोंने आकर प्रार्थना की कि महाराज ! आपने विद्याधरपति समेत षट्खण्ड पृथ्वीका साधन किया है— छहों खण्ड मही जीत ली है; इस कारण हे इन्द्रके समान पराक्रमशाली ! अगर आप हमें आज्ञा दें, तो हम स्वच्छन्दतापूर्वक आपका महाराज्याभिषेक करें । महाराजने आज्ञा दे दी,-- तब देवताओंने शहर के बाहर ईशान कोणमें, सुधर्मा सभाके एक खण्ड जैसा मण्डप बनाया । वे सरोवर, नदियाँ, समुद्र और अन्यान्य तीर्थोंसे जल, औषधि और मिट्टी लाये । महाराजने पौषधालय में जाकर अष्टम तप किया, क्योंकि तपसे मिला हुआ राज्य तपसे ही सुखमय रहता है । अष्टम तप पूर्ण होनेपर
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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