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________________ आदिनाथ-चरित्र प्रथम पव माणिकोंकी प्रभासे दिशाओंको प्रकाशित करने वाले विमानों में बैठ कर, वैमानिक देवोंसे अलग न हो जायें, इस तरह चलने लगे। कोई पुष्करावर्त मेघ जैसे मद विन्दुओंको बरसाने वाले और गर्जना करने वाले गन्धहस्ती पर बैठ कर चले। कोई सूर्य और चन्द्र के तेजसे व्याप्त हों ऐसे सोने और जवाहिरातसे बने हुए रथों पर सवार होकर चले। कितने ही आकाशमें सुन्दर चाल से चलने वाले और अत्यन्त वेगवान, वायुकुमार देव जैसे घोड़ों पर बैठ कर चलने लगे और कितने ही हाथोंमें हथियार ले, वज्र के कवच पहन, बन्दरोंकी तरह कूदते उछलते पैदल ही चलने लगे। इस तरह विद्याधरोंकी सेनासे घिरे हुए नमि विनमि बैताढ्य पर्वतसे उतर कर, महाराज भरतके पास आये। नमि और विनमि का अधीन होना। आकाशमें से उतरती हुई विद्याधरोंकी सेना मणिमय विमानों से आकाशको बहुसूर्यमय प्रज्वलित तथा प्रकाशमान अस्त्र शस्त्रों से विद्यु तमय और उद्दाम दुंदुभि ध्वनिसे घोषमय करती हुई सी मालूम होती थी ; अर्थात् विद्याधर-सेनाको आकाश से नीचे उतरती हुई देखने से ऐसा मालूम होता था, गोया आस्मानमें अनेक सूरज प्रकाश कर रहे हैं, बिजलियाँ चमक रही हैं और गरजना हो रही है । 'अरे दण्डार्थि' ओ दण्ड मांगनेवाले! तू हम लोगोंसे दण्ड लेगा?' यह कहते हुए, विद्यासे उन्मत्त और गर्वित उन दोनों विद्याधरोंने भरतपतिको युद्ध के लिये ललकारा।
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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