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________________ .- ramanararwanawwwwwwwwww........... आदिनाथ-चरित्र प्रथम पर्व भरत छत्ररत्न और चर्मरत्नके बीचमें परिवार सहित सुखसे रहने लगे। इस भाँति उसमें रहने पर, कल्पान्तकालकी तरह, अश्रांत वर्षा करने वाले नागकुमार देवताओं ने सात अहोरात्र-दिनरात बिता दिये। ___ इसके बाद, 'यह कौन पापी मुझे ऐसा उपसर्ग करने के लिए तैयार हुआ है' राजाके मनमें आये हुए ऐसे विचार को जानकर महा पराक्रमी और सदा पास रहनेवाले सोलह हजार यक्ष तैयार हुए, तरकश बाँधकर अपने धनुष सजाये और क्रोध रूपी अग्निसे शत्रुओं कोजलाना चाहते हों, इस तरह होकर नाग कुमारों के पास आये और कहने लगे-"अरे शोक करने योग्य नाग कुमारो तुम भवानी की तरह क्या पृथ्वीपतिमहाराज भरत को नहीं जानते? यह राजासारे संसार के लिये अजेय है, इस राजा पर किया हुआ उपद्रव, बड़े पर्वत पर दाँतों की चोट करने वाले हाथियों की तरह तुम्हारी ही विपत्ति का कारण होगा। अच्छा हो, यदि तुम खटमलों की तरह यहां से फौरन नौ दो ग्यारह हो जाओ, नहीं तो तुम्हारी जैसी पहले कभी नहीं हुई है, वैसी ही अपमृत्यु होगी।" म्लेच्छों का अधीन होना। ये बातें सुन कर आकुल व्याकुल हुए मेघमुख नागकुमारों ने ऐन्द्रजालिक जिस तरह अपने इन्द्रजाल का संहार करता है, बाज़ीगर अपनी माया का संहार करता है, उसी तरह क्षण भरमें ही मेघजल का संहार कर दियो। और 'तुम महाराज भरत की
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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