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________________ manavar AwAANA.AMAA आदिनाथ-चरित्र ३५० पथम पर्व तरह गृहउद्यानको कपाती हुई पृथ्वी धूजने लगी। चक्रवत्तोंके दिगन्तव्यापी प्रौढ़ प्रतापसे हुआ हो, इस तरह दिशाओंमें दावानल जैसा दाह होने लगा। उड़ती हुई बहुतसी धूलसे दिशाएँ पुष्पिणीरजश्वला स्त्री की तरह अनालोकपात्र-न देखने योग्य हो गई। दुष्ट और दुःश्रव निर्घोष करने वाले मगर जिस तरह समुद्र में परस्पर टकराते हों. इस तरह दुष्ट पवन परस्पर टकगने लगे। आकाशमें से चारों तरफ, मशालोंके समान समस्त म्लेच्छ-व्याघ्रो के हृदयोंको क्षुभित करने वाला उल्कापात होने लगा; अर्थात् आकाशसे तारे टूट टूट कर गिरने लगे, जिसको देख कर म्लेच्छों के हृदय हिलने लगे। क्रोध करके उठे हुए यमराजके हस्ताघात पृथ्वी पर पड़ते हों, इस तरह भयङ्कर शब्दोंके साथ वज्रपात होने लगा; अर्थात् भयङ्कर गर्जनाके साथ पृथ्वी पर बिजलियां पड़ती थीं; उनसे ऐसा जान पड़ता था, मानो यमराज क्रोधमें भर कर पृथ्वी पर अपने भयङ्कर हाथ मार रहे हों। मृत्यु-लक्ष्मी के क्षत्र हों, इस तरह कव्यों के मण्डल आकाश में जगह जगह घूमने लगे। __ इस ओर; सोने के कवच, फर्सी और प्रासकी किरणों से, आकाश चारो सहस्र-किरण सूर्य को कोटि किरणवाला करनेवाले, उदंड दंड कोदंड और दुर से आकाश को उन्नत करने वाले, ध्वजाओं में विते और लिखे हुए प्यान, सिंह और तर्कों के चित्रों से आकाशचारी-आकाश में रहनेवाली स्त्रियों को भय भीत करनेवाले और बड़े बड़े हाथियों के घाटारूपी मेघों से
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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