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________________ आदिनाथ चरित्र ३४६ प्रथम रर्व मनुष्य-सम्बन्धी उपद्रव नहीं होते उस रत्नके प्रभावले लारे दुःख अन्धकार की तरह नाश हो जाते हैं तथा शास्त्रके घावकी तरह रोग भी निवारण हो जाते हैं। सोने के घड़े पर जिल तरह सोनेका ढक्कन रखते हैं ; उसी तरह रिपुनाशक राजा ने हाथीके दाहिने कुम्भस्थल पर उस रत्नको रक्खा। पीछे-पोछे चलनेवाली चतुरंगिणी पहित चक्रको अनुसरण करने वाले, केशरी सिंहके समान गुकामें प्रवेश करने वाले नरकेशरी चक्रवत्तोंने चार अंगुल प्रमाणका दूसरा काकिणी रत्न भी ग्रहण किया। वह रत्न सूर्य, चन्द्र और अग्नि के जैसा कान्तिमान था, आकाशमें अधिकारणी के बराबर था हजार वृक्षोंसे अधिष्ठित था। ये बजनमें आठ तोले था। छ पत्ते और बारह कोने वाला तथा समतल था ; और मान उन्मान एवं प्रमाणसे युक्त था। उसमें आठ कणिकायें थीं और वह बारह योजन; यानी छियानवे मील तकके अन्धकार को नाश कर सकता था। गुफाके दोनों ओर, एक योजन या चार चार कोसके फासले पर, उस काकिंणी रत्नसे, अनुक्रमसे गोमुत्रिके सदश मण्डल लिखते हुए चक्रवर्ती चलने लगे। प्रत्येक मण्डल पाँच सौ धनुषके विस्तार वाला एक योजन—चार कोस तक प्रकाश करने वाला था। वे सब गिन्ती में उनचास हुए। जहाँ तक महीतल - पृथ्वी पर कल्याणवन्त चक्रवर्ती जीते हैं, वहाँतक गुफाके द्वार खुले रहते हैं। - तमोस्त्रा गुफामें प्रवेश । चक्ररत्नके पीछे-पीछे चलने वाले चक्रवत्तौके पीछे चलनेवाली
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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