SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 37
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कारका आदिनाथ-चरित्र १२ । प्रथम पर्व अनन्त-अपार दया-जल है । जिन भगवान्में अनन्त दया है, वही भगवान् दया करके आपलोगों को अनन्त अक्षय सुखैश्वर्य प्रदान करें, यही ग्रन्थकारका श्राशय है। कल्पद्रुमसधर्माणमिष्टप्राप्तौ शरीरिणाम् । चतुर्धाधर्मदेष्टारं धर्मनाथमुपास्महे ॥१७॥ जो भगवान् प्राणियों को उनके मन-चाहे पदार्थ देने में कल्पवृक्ष के समान हैं और जो चार प्रकार के धर्म का उपदेश देनेवाले हैं, उन भगवान् श्री धर्मनाथजी की हम उपासना करते हैं। खुलासा कल्पवृक्ष या कल्पद्रुम में यह गुण है, कि उससे जो कोई जिस पदार्थकी कामना करता है, उसे वह वही पदार्थ श्रासानी से दे देता है। भगवान् धर्मनाथजी संसार के प्राणियों के लिए कल्पवृक्ष हैं । संसारी लोग उन भगवान् से जो चीज़ माँगते हैं, भगवान उन्हें वही चीज, सहज में दे देते हैं । इस के सिवा वे दान, शील, तप और भाव रूपी चार प्रकार के धर्म का उपदेश भी देते हैं । हम उन्हीं कल्पतरु के समान मनवांछित फल दाता भगवान् की उपासना करते हैं। सुधासोदरवागज्योत्स्ना निर्मलीकृतदिङ्मुखः। मृगलक्ष्मा तमः शांत्यै शांतिनाथजिनोऽस्तुवः॥१८॥ * कल्पवृक्ष-एक वृक्ष का नाम है, जो माँगने पर मनचाहे पदार्थ देता है, यानी उससे जो माँगा जाता है, वही देता है। भगनान् भी भक्तों के लिए कल्पतरु हैं, उनसे प्राणी जो माँगते हैं, उन्हें वह वही देते हैं; स्त्री चाहने वाले को स्त्री, पुत्र कामी को पुत्र और धन-कामी को धन प्रभृति ।
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy