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________________ आदिनाथ चरित्र ३३० प्रथम - पव अतएव हे बुद्धिमान राजा ! इन ओछी बुद्धिबालों को मनाकर, और दण्ड तैयार करके, चक्रवर्ती को प्रणाम करनेके लिये कूच बोल । गन्धहस्ती को सूँघकर जिस तरह दूसरे हाथी शान्त हो जाते हैं—- कान पूँछ नहीं हिलाते - उत्पात नहीं करते; उसी तरह मंत्री की बातें सुनकर और वाण पर लिखे अक्षर देखकर मगधाधिपति शान्त हो गया-उसका क्रोध हबा हो गया । शेष में, वह बाण और भेंट को लेकर भरत चक्रवर्ती के पास आया और प्रणाम करके इस भाँति कहने लगा:- “पृथ्वीनाथ ! कुमुदखण्डको पूर्णमासी के चन्द्रमा की तरह, भाग्य योगसे मुझे आप के दर्शन मिले हैं । भगवान् ऋषभ स्वामी जिस तरह पहले तीर्थ डर होकर विजयी हुए हैं, उसी तरह आप भी पहले चक्रवर्ती होकर बिजयी हों, जिस तरह ऐरावत हाथी का कोई प्रतिहस्ती नहीं, वायुके समान कोई बलवान नहीं और आकाश से बढ़कर कोई मानवाला नहीं; उसी तरह आप की बराबरी करने बाला भी कोई नहीं हो सकता । कान तक खींचे हुए आपके धनुष में से निकले हुए बाण को, इन्द्र-वज्रकी तरह, कौन सह सकता है ? मुक प्रमादी पर कृपा करके, आपने कर्त्तव्य जनाने के लिये, छड़ी दार की तरह, यह बाण फेंका, इसलिये हे नृपशिरोमणि ! आज से मैं आप की आज्ञा को शिरोमणि की तरह, मस्तक पर धारण करूँगा 1 हे स्वामिन ! मैं आपके आरोपित किये स्थापित किये जयस्तम्भ की तरह, निष्कपट भक्ति से, इस मागधतीर्थ में रहूँगा । यह राज्य, यह सब परिवार, स्वयं मैं और अन्य
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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