SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 352
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम पर्व आदिनाथ चरित्र अधर दल-होठोंको फड़काने लगा। आकाश में धूमकेतुके समान ललाटमें रेखाओं को चढा, बाज़ीगर जिस तरह सांप को पकड़ता है, उसी तरह अपने दाहिने हाथसे आयुध को ग्रहण कर, बायें हाथ से, शत्रुके गाल की तरह, आसन पर ताड़न कर, विषज्वाला जैसी वाणी से बह बोला। मागधतीर्थपति का कोप । अप्रर्थित वस्तु की प्रार्थना करने वाले अविचारी विवेक शून्य और अपने तई बीर मानने वाले किस कुबुद्धि पुरुष ने मेरी सभामें यह बाण फैका है ? ऐसा कौन पुरुष है, जो ऐरावत हाथी के दाँत तोड़ कर अपने कानों का गहना बनाना चाहता है ? ऐसा कौन पुरूष है जो, गरुड़ के पडों का मुकुट बनाना चाहता है ? शेष नाग के मस्तकके ऊपर की मणिमाला को ग्रहण करने की कौन आशा करता है ? कौन पुरुष है, जो सूर्यके घोड़ों को हरने की इच्छा करता है ? ऐसे पुरुष के प्राणो को मैं उसी तरह हरण करता हूँ, जिस तरह गरुड़ सर्पके प्राणोंको हरण करता है। यह कहता हुआ मागध पति बड़े ज़ोर से उठकर खड़ा हो गया और विलमें से सर्प की तरह म्यानसे तलवार खींची और आकाश में धूमकेतु का भ्रम करने वाली तलवार को कम्पाने लगा। समुद्र बेलाके समान उसका सारा दुर्वार परिवार भी एक दम कोपटोप सहित तत्काल खड़ा होगया। कोई अपने खड्गों से आकाशको मानो कृष्ण विद्यु तमय करते हों, इस तरह करने लगे। कोई
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy