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________________ प्रथम पर्व ३२५ आदिनाथ चरित्र बड़े ग्राह और मगर मच्छ होते हैं, राजाके पास मगर मच्छ जैसे शकट या गाडे थे, समुद्रमें कलोलें होती हैं, राजा के पास कल्लोलों के बजाय चपल घोड़े थे, समुद्र में सर्प रहते हैं, उनके बजाय राजाके यहाँ विचित्र विचित्र अस्त्र शस्त्र थे । समुद्र में किनारा होता है, राजाकी सेनाके चलने से जो धूल उड़ती थी, वही बेला या किनारा था, समुद्र गर्जना करता है, महाराजा के रथ गर्जना करते थे - अतः महाराजा दूसरे समुद्र के समान थे, फिर मच्छों की आवाज़ों से जिसकी गर्जना बड़ गई है, ऐसे समुद्र में रथकी धुरी तक रथको प्रविष्ट किया। पीछे एक हाथ धनुषके मध्य भाग में रख, एक हाथ प्रत्यञ्चा के अन्त में रख, प्रत्यञ्चा को चढ़ाकर पञ्चमीके चन्द्रमाके आकार धनुष को बनाया, और अपने हाथ से धनुषकी प्रत्यञ्चा खींचकर, मानों धनुर्वेद का आदि ओंकार हो - इस तरह ऊँची आवाजले टंकार किया । पीछे पाताल द्वार में से निकलते हुए नागके जैसा अपने नामसे अङ्कित हुआ एक वाण तरकस में से निकाला। सिंहके कर्ण जैसी मुट्ठी से, पडुके अगले भागसे उसे पकड़ कर, शत्रुओं में बज्रदण्डके समान उस बाण को प्रत्यञ्चाके साथ जोड़ दिया ! सोने के कर्णफूल रूप पद्म नाल की तुलना करने वाला वह सुवर्ण मय बाण चक्रवर्त्तीने कानों तक खींचा। महाराज के नख रत्नोंसे प्रसार पाती हुई किरणों से बह बाण मानों अपने सहोदरों से घिरा हो इस तरह शोभायमान था । खींचे हुए धनुष के अन्तिम भागमें लगा हुआ वह प्रदीप्त बाण, मौत के खुले हुए मुँह के भीतर चञ्चल जीभकी लीला को धारण करता था
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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