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________________ प्रथम पर्व ३२३ मागधतीर्थ पर भरतचक्री का आना । वहीं एक दिन रात बिताकर - २४ घण्टे ठहर कर - सवेरे ही कूच किया गया । उस दिन भी एक योजन चार कोस चलने वाले चक्र के पीछे चक्रवर्ती भी उतनाही चले। इस तरह सदा चार कोस रोज चलने वाले चक्रवर्ती महाराज मागध तीर्थ में आ पहुँचे। वहाँ पूर्व समुद्र के किनारे महाराज ने ३६ कोसकी चौड़ाई और ४८ की लम्बाई में सेनाका पड़ाव किया; यानी वह सेना १७२८ कोस या ३४५६ वर्गमील भूमिमें ठहरी । वर्द्धकिरत्न ने वहाँ सारी सेना के लिये आवास-स्थान बनाये । और धर्म रूपी हाथी की शालारूप पौषधशाला भी बनाई। जिस तरह सिंह पर्वत से उतरता है; उसी तरह महाराजा भरत उस पौषध शाला में अनुष्ठान करने की इच्छा से हाथी से उतरे । संयम रूपी साम्राज्य लक्ष्मी के सिंहासन - जैसा दूबका नूतन संधारा भी चक्रवती ने . वहाँ बिछाया । हृदय में मागध तीर्थ कुमार देवको धारण करके, अर्थसिद्धि का आदि द्वार रूप अष्टमभक्त, यानी अडुमका तप किया। पीछे निर्मल बस्त्र पहन, फूलों की माला और विलेपन को त्याग कर, शस्त्र को छोड़कर, पुण्यको पोषण करने के लिये, औषध के समान पौषधवत ग्रहण किया । अव्यय पद में जिस तरह सिद्धि निवास करती है, उसी तरह उस दूबके संथारे पर पौषधती महाराज ने जागते हुए पर क्रिया रहित हो कर निवास किया। शरद् ऋतु के मेवोंमें जिस तरह सूर्य निकलता आदिनाथ चरित्र
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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