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________________ आदिनाथ-चरित्र प्रथम पर्व मूर्तिमान शुक्लध्यान से बनी है । भगवान् की स्वभावसे ही सुन्दर देह तुम सब का कल्याण करे! करामलकवद्विश्वं, कलयन् केवलश्रिया। अचिन्त्यमाहात्म्यनिधिः,सुविधिबाधयेऽस्तुवः॥११॥ जो अपने केवल ज्ञान से, समस्त संसार को, हाथ में रक्खे हुए आँवलेकी तरह, साफ देखनेवाले हैं, जो अचिन्तनीय माहात्म्य या प्रभाव के ख़ज़ाने हैं, वे सुविधिनाथ भगवान् तुम्हारे-सम्यक्त्व पाने में सहायक हों! खुलासा-जिन सुविधिनाथ भगवान को सारा भूमण्डल, उन के केवलज्ञान के बल से, हाथ में रखे हुए आँवले + की तरह, हरतरफ से साफ दिखाई देता है, और जो अचिन्तनीया प्रभाव के भण्डार हैं. वही सुविधिनाथ भगवान् आप लोगों के सम्यकूत्व-पूर्णता-सत्य के प्राप्त करने में सहायक हों; अर्थातू उनकी कृपा या सहायता से आप लोगों को सत्य की प्राप्ति होजाय । ___ अचिन्तनीय माहात्म्य = ख़याल में भी न आने योग्य महिमा या शक्ति। + जिस तरह मनुष्य को हाथ में रखे हुए आँवले को हर पहल से देख सकना आसान है। उसी तरह भगवान् को सारे संसार को देख लेना आसान है। मनुष्य अपने चर्मचक्षूओं से हाथ के आँवले को स्पष्ट देख सकता है, भगवान् सुविधिनाथ अपने कंवल-ज्ञान से संसार को स्पष्ट देख सकते हैं। अचिन्तनीय%Dजिसका खयाल भी न किया जासके, जिसको कल्पना भी न हो सके। सम्यकत्व-सत्य, पूर्णता, पूर्ण ज्ञान ।
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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