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________________ आदिनाथ चरित्र प्रथम पर्व सकता। शरीर बिना केवल ज्ञान हो नहीं सकता, अब मैंने प्रभुका पारणा करा दिया-ईखरस पिला दिया, इससे पभुके शरीरमें बलआया और वह कान्तिमान हो गया। अवप्रभुको केवल ज्ञान हो सकेगा, यह सब मेरे द्वारा हुआ इसीसे स्वप्नमें मेरे द्वारा सूर्यकी गिरी हुई सहस्र किरणें फिर सूर्यमें जोड़ी हुई और सूर्य तेजधान देखा गया। खुलासा यह है, स्वप्नमें जो सूर्य सेठको दीखा, वह यह भगवान् हैं। उसकी सहस्र किरणें गिरी हुई देखी गई ; वह आपका केवल ज्ञानसे भ्रष्ट होना है। मैंने किरणे फिर सूर्य में जड़दी, वह मेरा प्रभुको पारणा करा देना है। सूर्यका तेज जिस तरह स्वप्नमें मेरे किरण जड़ देने पर बढ़ गया उसी तरह पारणा कराने से भगवानका तेज बल बढ़ गया और उनमें केवल ज्ञानका सम्भव है।” युवराजले ये बातें सुनकर वे सब "बहुत ठीक है, बहुत ठीक हैं" कहते हुए खुशीके साथ अपने अपने घर गये। श्रेयांसके घर पारणा कर जगत्पति वहांसे दूसरी जगहको विहार कर गये; यानी चले गये। क्योंकि छद्मस्थ तीर्थङ्कर एक जगह नहीं ठहरते। भगवान्के पारणेके स्थानको कोई उलाँधे नहीं, इसलिये श्रेयांसने वहाँ रत्नमय पीठ बनवा दी। मानों साक्षात् भगवान्के चरण-कमल ही हों, इस तरह गाढ़ भक्तिसे विनम्र हो, वह उस रत्नमय पीठकी त्रिकाल; अर्थात् तीनों समय पूजा करने लगा। “यह क्या हैं ?" जब लोग इस तरह पूछते थे, तब श्रेयांस यह कहते थे—'यह आदिकर्ताका मण्डल है।' इसके
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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