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________________ आदिनाथ-चरित्र २२६ प्रथम पर्व तीर्थोके जलसे प्रभुका राज्याभिषेक किया। फिर इन्द्रने निर्मलता सें चन्द्रमाके जैसे तेजोमय दिव्य वस्त्र स्वामीको पहनाये और त्रैलोक्य मुकुट रूप प्रभुके अङ्गों पर उचित स्थानों में मुकुट आदि अलङ्कार पहनाये । इसी बीच में युगलिये कमलके पत्तोंमें जल लेकर आये । वे प्रभुको गहने कपड़ों से सजे हुए देखकर एक ओर इस तरह खड़े हो रहे, मानों अर्घ्य देनेको खड़े हों। दिव्य वस्त्र और दिव्य अलंकारों से अलंकृत प्रभु के मस्तक पर यह पानी डालना उचित नहीं है, ऐसा विचार करके उन्होंने वह लाया हुआ जल उनके चरणों पर डाल दिया। ये युगलिये सब तरह से विनीत हो गये हैं—ऐसा समझ कर, उनके रहने के लिए, अलकापतिको विनीता नामक नगरी निर्माण करनेकी आज्ञा देकर इन्द्र अपने स्थान को चले गये। राजधानी निर्माण। कुबेरने अड़तालीस कोस लम्बी, छत्तीस कोस चौड़ी विनीता नामक नगरी तैयार की और उसका दूसरा नाम अयोध्या रक्खा। यक्षपति कुबेरने उस नगरी को अक्षय वस्त्र, नेपथ्य, और धनधान्यसे पूर्ण किया। उस नगरीमें हीरे, इन्द्र नीलमणि और व. डूर्य मणिकी बड़ी-बड़ी हवेलियाँ, अपनी विचित्र किरणों से, भाकाशमें भीतके विना ही, विचित्र चित्र-क्रियाएं रचती थीं अर्थात् उस नगरी की रतमय हवेलियों का अक्स आकाशमें पड़ने से, बिना दीवारोंके, अनेक प्रकार के चित्र बने हुए दिखाई देते ४ चौर मेरू पर्वत की चोटीके समान सोनेकी ऊँची हवेलियाँ ध्वजा
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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