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________________ प्रथम पर्व vavvv novomM marvvvvvvv आदिनाथ-चरित्र २१८ तरह उनके आगे-आगे चलने लगा। अप्सराये दोनों ओर लवण उतारने लगीं। इन्द्राणियाँ मंगल गान करने लगीं । सामा. निक देवियाँ बलैयाँ लेने लगीं । गन्धर्व खुशीके मारे बाजे बजाने लगे। इस तरह दिव्य वाहन पर बैठकर प्रभु मण्डप-द्वाराके. पास आये, तो आपही विधिको जानने वाले प्रभु वाहनसे उतरकर मण्डप द्वारके पास उसी तरह खड़े होगये, जिस तरह समुद्रकी वेला अपना मर्यादा भूमिके पास आकर रुक जाती है। इन्द्रने प्रभुको हाथका सहारा दिया, इस कारण वे उस तरह शोभा पाने लगे जिस तरह वृक्षके सहारेसे खड़ा हाथी शोभा पाता है । उसी समय मंडप की स्त्रियों में से एक ने अन्दर नमक और आग होने के कारण तड़ तड़ आवाज़ करनेवाला एक शराव-सम्पुट दरवाजेके बिच में रक्खा। किसी स्त्रीने, पूर्णिमा जिस तरह चन्द्रमा को धारण करती है, उसी तरह दूब प्रभृति मंगल पदार्थों से लांछित चाँदी का एक थाल प्रभुके सामने रक्खा । एक स्त्री कसूमी रग के वस्त्र पहने हुए मानो प्रत्यक्ष मंगल हो इस तरह पञ्च शाखावाले मथन दंड को ऊँचा करके अर्घ्य देने के लिये खड़ी हुई । उस समय देवांगनायें इस तरह धवल मंगल गा रही थीं:-हे अर्घ्य देनेवाली ! इस अर्घ्य देने योग्य वरको अर्घ्य दे; क्षण-भर, मांखण डण्डा जिस तरह समुद्र में से अमृत फेंकता है; उसी तरह थाल में से दही फैक; हे सुन्दरी ! नन्दन वनसे लाये हुए चन्दन रस को तैयार कर, भद्रशाल वन से लाई हुई दूब को खुशी से लाकर दे, क्योंकि इकट्ठे हुए लोगों की नेत्रपंक्तिसे
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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