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________________ आदिनाथ-चरित्र प्रथम पत्र उनके भोगे बिना पीछा नहीं छूटेगा-सिर हिलाकर अपनीसम्मति प्रकट कीऔर सन्ध्याकालके कमलकी तरह नीचा मुंह करके रह गये। इन्द्रने प्रभुका आन्तरिक अभिप्राय समझकर, विवाह के लिये उन्हें प्रस्तुत समझकर, विवाह-कर्म आरम्भ करनेके लिए तत्काल वहाँ देवताओं को बुलाया। इन्द्रकी आज्ञासे, उसके अभियोगिक देवताओंने सुधर्मा सभाके छोटे भाईके जैसा एक सुन्दर मण्डप तैयार किया। उसमें लगाये हुए सोने, चाँदी और पद्मरागमणिके खम्भे-मेरु, रोहणाचल और वैताढ्य पर्वत की चूलिका की तरह शोभा देते थे। उस मण्डपके अन्दर रखे हुए सोनेके प्रकाशमान् कलश चक्रवतीके कांकणी रत्नके मण्डल की तरह शोभा देते थे और वहाँ सोने की वेदियाँ अपनी फैलती हुई किरणोंसे, मानो दूसरे तेजको सहन न करनेसे, सूर्यके तेजका आक्षेप करती सी जान पड़ती थीं। उस मण्डपमें घुसनेवालों का जो प्रतिबिम्ब या अक्स मणिमय दीवारोंपर पड़ता था, उससे वे बहुपरिवारवाले मालूम होते थे। रत्नोंके बने हुए खम्भोंपर बनी हुई पुतलियाँ नाचनेसे थकी हुई नाचनेवालियोंकी तरह मनोहर जान पडती थीं। उस मण्डप की प्रत्येक दिशामें जो कल्पवृक्षके तोरण बनाये थे, वे कामदेवके बनाये हुए धनुषों की तरह शोभा देते थे और स्फटिक के द्वार की शाखाओं पर जो नीलम के तोरण बनाये थे, वे शरद् ऋतुकी मेघमालामें रहनेवाली सूओं की पंक्तिके समान सुन्दर और मनोमोहक लगते थे। किसी किसी जगह स्फटिक या बिल्लौरी शीशे से बने हुए फर्शपर निरन्तर
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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