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________________ आदिनाथ-चरित्र २०८ प्रथम पर्व विहार करते थे। बलि इन्द्रकी गोदमें पाँव रखकर और अमरेन्द्रके गोद रूपी पलंगपर अपने शरीरका उत्तर भाग रख, देवताओं द्वारा लाये गये आसनपर बैठ, दोनों हाथोंमें रूमाल रखनेवाली अप्सराओंसे घिरे हुए प्रभु, अनासक्तता-पूर्वक, कितनीही दफा दिव्य संगीतको देखते थे। एक युगलिये की अकाल मृत्यु । एकदिन बालकों की तरह, साथ खेलता हुआ युगलिये का एक जोड़ा,एक ताड़के वृक्षके नीचे चला गया। उस समय देवदुर्विपाकसे ताड़का एक बड़ा फल उनमेंसे एक लड़केके सिरपर गिर पड़ा। काकतालीय-न्यायसे सिरपर चोट लगते ही वह बालक अकाल मौतसे मर गया। ऐसी घटना पहलेही घटी। अल्प कषाय की वजहसे वह बालक वर्गमें गया ; क्योंकि थोड़े बोझके कारण रूई भी आकाशमें चढ़ जाती है। पहले बड़े-बड़े पक्षी, अपने घोंसलेकी लकड़ी की तरह, युगलियों की लाशों को उठाकर समुद्रमें फेंक देते थे; परन्तु इस समय उस अनुभवका नाश होगया था, इसलिये वह लाश वहीं पड़ी रही ; क्योंकि अवसर्पिणी काल का प्रभाव आगे बढ़ता जाता था। उस जोड़े में जो बालिका थी. वह स्वभावसे ही मुग्धापन से सुशोभित थी। अपने साथी बालकका नाश हो जानेसे बिकते-बिकते बची हुई चीज़की तरह होकर वह चञ्चल-लोचनी वहीं बैठी रही। इसके बाद, उसके माँ-बाप उसे वहाँसे उठा ले गये और उसका लालनपालन करने लगे एवं उसका नाम सुनन्दा रख दिया।
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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