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________________ आदिनाथ चरित्र १६६ सूरज बादलों में जलका सञ्चार करता है; उसी तरह इन्द्रने जगदीश के अँगूठे में अमृत का सञ्चार कर दिया । अर्हन्त माता के स्तनों का दूध नहीं पीते, इसलिये जब उनको भूख लगती है, तब वे अपने सुधारस की वृष्टि करनेवाले अँगूठे को मुँह में लेकर चूसते हैं। शेषमें प्रभु का सब प्रकारका धातृ कर्म करने के लिए, इन्द्रने पाँच अप्सराओं को धाय होकर वहाँ रहने का हुक्म दिया; अर्थात् उनको धाय की तरह प्रभु के लालन-पालन करनेकी आज्ञा दी । नन्दीश्वर द्वीपमें जाकर देवताओंका महोत्सव करना । जिन स -स्नात्र हो जानेपर, इन्द्र जब भगवान् को उनकी माँ के पास छोड़ने आया, तब बहुत से देवता, मेरु-शिखर से, नन्दीश्वर द्वीप को चले गये । सौधर्मेन्द्र भी नाभिपुत्रको उनके घर में रखकर, स्वर्गवासियों के आवास-स्थान- नन्दीश्वर द्वीप - में गया और वहाँ पूर्वदिशास्थित - क्षुद्र मेरु जितने ऊँचे-देवरमण नाम के अञ्जनगिरि पर उतरा । वहाँ उसने विचित्र-विचित्र प्रकारकी मणियों की पीठिकावाले चैत्यवृक्ष और इन्द्रध्वज से अङ्कित चार दरवाज़ेवाले चैत्य में प्रवेश किया और अष्टान्हिका उत्सव -‍ -पूर्वक ऋषभादिक अर्हन्तों की शाश्वती प्रतिमाओं की उसने पूजा की। उस अञ्जनगिरि की चार दिशाओं में चार बड़ी-बड़ी वापिकायें हैं और उनमें से प्रत्येक में स्फटिक मणिका एकेक दधिमुख पर्वत, है । दधिमुख नाम के उन चारों पहाड़ों के ऊपर के चैत्यों में प्रथम पव
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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