SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 211
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदिनाथ-चरित्र प्रथम पर्व स्नात्र-जल रूपी सम्पत्ति कम होने से लजित हुए से जान पड़ने लगे। उस समय इन्द्र की आज्ञा के अनुसार चलनेवाले आभियोगिक देवता उन घड़ों को दूसरे घड़ों के जल से भर देते थे। एक देवता के हाथ से दूसरे देवता के हाथमें इस तरह अनेकों के हाथों में जानेवाले वे घड़े श्रीमानों के बालकों की तरह शोभते थे। नाभिराज के पुत्र के समीप रक्खी हुई कलशों की पंक्तियाँ आरोपण किये हुए सोने के कमलों की माला की लीला को धारण करती थीं। पीछे मुखभाग में जल का शब्द होनेसे मानो वे अर्हन्त की स्तुति करते हों ऐसे कलशों को देवता फिर से स्वामी के सिरपर ढोलने लगे। यक्ष जिस तरह चक्रवर्ति के धन-कलश को पूर्ण करते हैं : उसी तरह देवता प्रभु के स्नान करने से ख़ाली हुए, इन्द्रके घड़ों को जलसे पूर्ण कर देते थे। बारम्बार खाली होने और भरे जानेवाले वे घड़े सञ्चार करनेवाले घटीयंत्र के घण्टों की तरह सुन्दर मालूम होते थे। अच्युतेन्द्र ने करोड़ों घड़ों से प्रभु को स्नान कराया और अपनी आत्मा को पवित्र किया, यह आश्चर्य की बात है ! इसके बाद चारण और अच्युत देवलोक के स्वामी अच्युत इन्द्र ने दिव्यगंध काषायी वस्त्र से प्रभु के अंग को पोंछा। उसके साथ ही अपनी आत्मा को भी मार्जन किया। प्रातःकाल की अभ्रलेखा जिस तरह सूर्यमण्डल को छूनेसे शोभा पाती है ; उसी तरह गंध काषायी वस्त्र भगवान् के शरीर का स्पर्श करने से शोभायमान् लगता था। साफ किया हुआ भगवान् का शरीर सुवर्णसागरके
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy