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________________ आदिनाथ-चरित्र १८२ प्रथम पर्व प्रसाद के समान जल और कमल प्रभृति लिये । मानो उनके लिये ही इकट्ठी करके रक्खी हों, इस तरह वक्षस्कार पर्वत के ऊपर से दूसरी पवित्र और सुगन्धित वस्तुएँ उन्होंने लीं। मानो कल्याण से अपने आत्मा को ही भरते हों, इस तरह आलस्य रहित उन देवताओं ने देवकुरु और उत्तर कुरुक्षेत्र के सरोवरोंसे कलश जलसे भर लिये । भद्रशाल, नन्दन, सौमनस और पाण्डुक वनमें से उन्होंने गोशीर्ष चन्दन आदि वस्तुयें लीं। गन्धी जिस तरह सब तरह के गन्ध द्रव्यों को एकत्रित करता है, उसी तरह वे गन्ध द्रव्य और जलको एकत्रित करके तत्काल मेरु: पर्वत पर आये । अब दस हज़ार सामानिक देव, चालीस हज़ार आत्मरक्षक देव, तैंतीस त्रयस्त्रि ंशत् देव, तीनों सभाओं के सब देव, चार लोकपाल, सात बड़ी सेना, और सात सेनापतियों से घिरे हुए. आरणाच्युत देवलोकका इन्द्र, पवित्र होकर, भगवान् को स्नान कराने के लिए तैयार हुआ। पहले उस अच्युत इन्द्रने उत्तरासंग करके निःसंग भक्ति से, खिले हुए पारिजात प्रभृति पुष्पों की अञ्जलि ग्रहण कर, और सुगन्धित धूप से धूपित कर, त्रिलोकीनाथ के पास वह कुसुमाञ्जलि रक्खी। इसी समय देवताओं ने भगवान् की सानिध्यता प्राप्त होने के अद्भुत आनन्दसे म हों ऐसे और पुष्पमालाओं से चर्चित किये हुए सुगन्धित जल के घड़े वहाँ लाकर रक्खे । उन जल कलशों के मुँहपर भौंरों के शब्दों से शब्दायमान हुए कमल रक्खे थे। इससे ऐसा मालूम
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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