SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदिनाथ-चरित्र १५८ प्रथम पर्व किरणों का तेज और भी अधिक हो जाता है ; उसी तरह सारे कल्पवृक्ष और भी अधिक प्रभावशाली हो गये। जगत् में तिर्यंच और मनुष्यों के आपस के वैर शान्त होगये ; क्योंकि वर्षा ऋतुके आने से सर्वत्र सन्ताप की शान्ति हो जाती है। भगवान् आदि नाथका जन्म । इस तरह नौ महीने और साढे आठ दिन बीतनेपर, चैत मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन, जब सब ग्रह उच्च स्थानमें आये हुए थे और चन्द्रमा का योग उत्तराषाढ़ा नक्षत्रसे हो गया था, तब महादेवा मरुदेवाने युगल-धर्मी पुत्रको सुखसे जना । उस समय मानो हर्ष को प्राप्त हुई हो, इस तरह दिशायें प्रसन्न हुई और स्वर्गवासी देवताओं की तरह लोग बड़ी खुशी से तरहतरह की क्रीड़ाओं अथवा खेल-तमाशों में लग गये। उपपाद शय्या (देवताओं के पैदा होने की शय्या )में पैदा हुए देवता की तरह, जरायु और रुधिर प्रभृति कलङ्कसे वर्जित, भगवान् बहुत ही सुन्दर और शोभायमान दीखने लगे। उस समय जगत् के नेत्रों को चमत्कृत करनेवाला और अन्धकार को नाश करनेवाला विजलीके प्रकाश-जैसा प्रकाश तीनों लोक में हुआ। नौकरोंके न बजानेपर भी, मेघवत् गम्भीर शरदवाली, दुंदुभी आकाशमें बजने लगी। उस समय ऐसा जान पड़ने लगा, मानो स्वर्ग
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy