SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 176
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम पर्व १५१ आदिनाथ चरित्र · ; उसी नीति-क्रमसे उसी तरह शासन करने लगा, जिस तरह देवाधिपति इन्द्र देवताओं का शासन करते हैं । मरुदेव और श्रीकान्ता के प्रान्तकालके समय, उनसे नाभि और मरुदेवा इस नाम के युग्म या जोड़ ले पैदा हुए। सवा पाँच सौ धनुष प्रमाण शरीर वाले वे दोनों, क्षमा और संयम की तरह, साथ-साथही बढ़ने लगे । मरूदेवा प्रियङ्गुलताके जैसी कान्तिवाली थी और नाभि सुवर्णकी सी कान्तिवाला था इसलिये वे दोनों, मानों अपने मातापिता के ही प्रतिविम्ब हों इस तरह, शोभा पाने लगे । उन महात्माओं की आयु उनके माता-पिता मरुदेव और श्रीकान्तासे कुछ कम – संख्याता पूर्वकी थी । मरुदेव देह त्यागकर द्वीपकुमार में पैदा हुआ और श्रीकान्ता भी उसी समय मरकर नागकुमार में उत्पन्न हुई। उनके मरने के बाद, नाभिराजा युगलियोंका सातवाँ कुलकर - राजा हुआ। वह भी पहले कही हुई तीन प्रकार की नीतियोंसेही युग्मधर्मि मनुष्योंका शासन- शिक्षण करने लगा । मरुदेवा माता के देखे हुए चौदह स्वप्न । तीसरे आरके चौरासी लक्ष, पूर्व और नवासी पक्ष यानी तीन वर्ष साढ़े आठ महीने बाक़ी रहे थे, तब आषाढ़ महीने की कृष्ण चतुर्दशी या आषाढ़ बदी चौदस के दिन, उत्तराषाढ़ा नक्षत्र पहला विमल - वाहन, दूसरा चक्षुष्मान, तीसरा यशस्वी, चौथा अभिचन्द्र, पाँचवाँ प्रसेनजित, छठा मरुदेव, और सातवाँ नाभि कुलकर हुआ। युगलियोंके राजाको " कुलकर " कहते हैं ।
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy