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________________ प्रथम पर्व १४६ आदिनाथ चरित्र माता-पिता से कुछ कम उम्र वाले और साढ़े छे सौ धनुष ऊँचे शरीरवाले थे । एकत्र मिले हुए शमी और अश्वत्थ - पीपलवृक्षके समान वे साथ-साथ बढ़ने लगे । गंगा और यमुना के पवित्र प्रवाह के मिले हुए जलकी तरह वे दोनों निरन्तर शोभने लगे। आयु पूरी होने पर यशस्वी उदधिकुमार में उत्पन्न हुआ और सुरूपा उसके साथ ही काल करके नागकुमार में पैदा हुई । चौथा कुलकर - राजा । अभिचन्द्र भी अपने बाप की तरह, उसी स्थिति और उन दोनों नीतियों से युगलियों का शासन करने लगा । इसके बाद, जिस तरह अनेक प्राणियों के इच्छित चन्द्रमा को रात्रि जनती हैं; उसी तरह प्रान्त अवस्था में प्रतिरूपाने एक जोड़ली सन्तान जनो । माता-पिताने पुत्रका नाम प्रसेनजित रखा और पुत्री सबके नेत्रोंकी प्यारी लगती थी, इससे उसका नाम चक्षुः कान्ता रखा । वे अपने माँ-बाप से कम उम्रवाले, तमाल वृक्षके समान श्याम कान्तिवाले, बुद्धि और उत्साह की तरह, साथ-साथ बढ़ने लगे I छै धनुष प्रमाण शरीर को धारण करनेवाले और * विषुवत कालमें जिस तरह दिन और रात एक समान होते हैं; उसी तरह एकसी कान्तिवाले हुए । उनके पिता अभिचन्द्र, पञ्चत्व को प्राप्त होकर देहत्याग कर, उदधिकुमार में पैदा हुए और प्रतिरूपा नागकुमार में उत्पन्न हुई । * तुल और मेश राशि पर जब सूर्य आता है, तब उसे "विषुवत् "काल ' कहते हैं ।
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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