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________________ आदिनाथ-चरित्र प्रथम पर्व व्रत बाँटनेवालेकी तरह, चार प्रकारका विचित्र रसवाला भोजन, पहले जितना नहीं देते थे। मण्यंग कल्पवृक्ष, मानो फिर किस तरह वापस मिलेगा, ऐसी चिन्तासे आकुल होगये हों इस तरह, पहले के प्रमाण से, गहने या ज़ेवर नहीं देते थे। मन्दव्युत्पत्ति शक्तिवाले कवि जिस तरह अच्छी कविता देर में कर सकते हैं ; उसी तरह गेहाकार कल्पवृक्ष घर देनेमें देर करने लगे। क्रूर ग्रहोंसे अवग्रहको प्राप्त हुआ मेघ जिस तरह थोड़ा थोड़ा जल देता है ; उसी तरह अनग्न वृक्ष हाथ रोक-रोककर वस्त्र देने लगे। कालके ऐसे प्रभावसे, युगलियोंको भी, देहके अवयवोंकी तरह, कल्पवृक्षोंपर ममता होने लगी। एक युगलियेकेस्वी. कार किये हुए कल्पवृक्षका दूसरे युगलियेके आश्रय करनेसे, पहले स्वीकार करनेवाले का बहुत भारी पराभव होने लगा। इसलिए आपसके ऐसे पराभव को सहन करने में असमर्थ युगलियोंने अपनेसे अधिक विमलवाहन को अपने स्वामी मान लिया। जाति-स्मरणसे नीतिज्ञ विमलवाहनने, जिस तरह बूढ़ा आदमी अपने नातेदारोंको धन बाँट देता है उसी तरह युगलियोंको कल्पवृक्ष बाँट दिये। दूसरे के कल्पवृक्ष की इच्छासे मर्यादा भंग करनेवालों के शिक्षा देनेके लिए उसने “हाकार नीति" प्रकट की। जिस तरह समुद्र की भरतीका जल मर्यादा उल्लङ्घन नहीं करता ; उसी तरह 'हा! तूने बुरा काम किया' ऐसे शब्दसे सिखाये हुए युगलिये उसकी मर्यादा का उल्लङ्घन नहीं करते थे। डिपडे या लकड़ी की चोट सहना भला, पर हाकार शब्दसे
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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