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________________ आदिनाथ चरित्र १४४ प्रथम पर्व सागर और अशोक का पुनजन्म | अशोक का हाथी के रूप में जन्म लेना । और सागर की पर जन्म में मुलाकात | सागरचन्द्र और प्रियदर्शना तीसरे आरके अन्त में फिर पैदा हुए, इसलिए वे नौसौ धनुष ऊँचे शरीरवाले एवं पल्योपमके दशमांश आयुष्यवाले युगलिये हुए । उनके शरीर वज्रॠषम नाराच संहनन वाले और समचतुरस्त्र संस्थान वाले थे । मेघ-मालासे जिस तरह मेरु पर्वत शोभित होता है, उसी तरह जात्यवन्त सुवर्णकी कान्ति वाला उस सागरचन्द्रका जीव अपनी प्रियङ्गु रङ्गवाली स्त्री से शोभित होता था । I 7 अशोकदत्त भी अपने पूर्वजन्मके किये हुए कपटसे, उसी जगह, सफेद रंग और चार दाँतोंवाला देवहस्ती के समान हाथी हुआ । एक दिन वह हाथी अपनी मौजमें घूम रहा था । घूमतेघूमते उसने युग्मधर्मि अपने पूर्वजन्म के मित्र - सागरचन्द्र को देखा । विमलवाहन पहला कुलकर - राजा । विमलवाहन और चन्द्रयशा का देहान्त | मित्र को देखतेही, उस हाथीका शरीर दर्शनरूपी अमृतधारासे व्याप्त सा हो उठा। बीजसे जिस तरह अंकुर की उत्पत्ति होती है; उसी तरह उसमें स्नेहकी उत्पत्ति हुई । इसलिये उसने उसे, सुख मालूम हो इस तरह, अपनी सूँड से आलिङ्गन
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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