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________________ प्रथम पर्व १२६ आदिनाथ-चरित्र सागर और अशोक बाग़ में। सागरचन्द्र की बहादुरी । प्रियदर्शना की रक्षा। दूसरे दिन सवेरे ही राजा अपने परिवार-समेत, बाग़ में गया। वहाँ नगर के लोग भी आये थे, क्योंकि 'प्रजा राजा का अनुसरण करनेवाली होती है।' मलय पवन के साथ जिस तरह वसन्त ऋतु आती है ; उसी तरह सागरचन्द्रभी अपने मित्र अशोकदत्त के साथ बाग़ में पहुंचा। कामदेव के शसन में रहने वाले. कामी पुरुष-फूल तोड़-तोड़कर, नाच-गान वगैरः में लग गये। स्थान-स्थान पर इकट्ठे होकर, क्रीड़ा करते हुए नगर-निवासी, निवास किये हुए कामदेव रूपी राजा के पड़ाव की तुलना करने लगे। कदम-कदम पर गाने-बजाने की ध्वनि इस तरह उठने लगी; गोया दूसरी इन्द्रियों के विषयों को जीतने के लिये उठी हों। इतने में, पास के किसी वृक्ष की गुफा में से “रक्षा करो, रक्षा करो" की आवाज़ किसी स्त्री के कंठ से अकस्मात् निकली। उस आवाज़ के कान में पड़ते ही, उस से आकर्षित हुए के समान सागर चन्द्र "यह क्या है !" कहता हुआ संभ्रम के साथ वहाँ दौड़ा गया। वहाँ जाकर उसने देखा कि, जिस तरह व्याघ्र हिरनी को पकड़ लेता है ; उसी तरह बन्दीवानों ने पूर्णभद्र सेठ की प्रियदर्शना नामकी कन्या पकड़ रखी है। जिस तरह साँप
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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