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________________ प्रथम पर्व १५ आदिनाथ-चरित्र के नाम नहीं जानता। इन बातों से उसे धूर्त्त-मायावी समझ कर, पण्डिता ने दिल्लगी के साथ कहा-'तेरे कथनानुसार यह तेरा पूर्व जन्म का चरित्र है। ललिताङ्ग देव का जीव तू है और तेरी स्त्री स्वयंप्रभा, इस समय, नन्दीग्राम में, कर्मदोष से लँगड़ी होकर जन्मी है । उसे जाति-स्मरण हुआ है। इससे उसने अपना चरित्र इस पट में लिखकर, जब मैं धातकी खण्ड में गई थी, तब मुझे दे दिया। उस लँगड़ी पर दया आने से मैंने तुझे खोज निकाला; इसलिये अब तू मेरे साथ चल, मैं तुझे उसके पास धातकी खण्ड में ले चलू। हे पुत्र ! वह ग़रीबनी तेरे वियोग के कारण बड़े दुःख से जीती है। इसलिये वहाँ चलकर, अपनी पूर्व जन्म की प्राणवल्लभा को आश्वासन कर-उसे तसल्ली दे।' ये बातें कहकर ज्योंही पण्डिता चुप हुई कि, उसके समवयस्क या लंगोटिया यारों ने उसकी दिल्लगी करते हुए कहा-'मित्र ! आप को स्त्री-रत्न की प्राप्ति हुई है, इस से जान पड़ता है कि, आप के पुण्यका उदय हुआ है। इसलिये आप वहाँ जाकर, उस लूली स्त्री से मिलिये और सदा उसकी परवरिश कीजिये ।' मित्रों की ऐसी मसखरी की बातें सुनकर दुर्दान्त लज्जित हो गया और बेची हुई वस्तु में से अवशिष्ट-बाकी रही हुई की तरह होकर, वहाँ से चला गया।
SR No.010029
Book TitleAadinath Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPratapmuni
PublisherKashinath Jain Calcutta
Publication Year
Total Pages588
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Mythology
File Size21 MB
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